Book Title: Devta Murti Prakaran
Author(s): Vinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 222
________________ 186 देवनामृति-प्रकरणम् hundred hasta, and where a Svayambhu linga an arca upto one thousand hasta should be so regarded. (124). शिव तीर्थोदक का पुण्य फल स्नाने कृते महत्पुण्यं लिङ्गादिषु दिशं प्रति। . शिव लिङ्ग की दिशा के सामने शिवतीर्थोदक में स्नान करने से बड़ा. पुण्य होता है। Bathing in the consccrated water of these holy places, in the direction the linga faces, enables the devotee to accumulate immense merit. (125a). . शिव स्नानोदक का फल लंघिते च महत्पापं शिवस्नानोदके नृणाम् ॥ १२५ ॥ शिवजी के स्नान के पानी को लांघने से मनुष्यों को बड़ा पाप लगता है। It is a great sin to transgress, disrespect or violate the sacred waters of Siva (?meant for Siva's bath?). (125). प्रदक्षिणा का नियम एकां चण्ड्यां रवौ सप्त तिस्रो दद्याद् विनायके। चतस्रो विष्णुदेवस्य शिवस्या( प्रदक्षिणाम् ॥ १२६ ॥ चण्डी देवी को एक, सूर्य को सात, गणेश को तीन, विष्णु को चार और शिव जी को आधी प्रदक्षिणा देनी चाहिये। The goddess Chandi should be circumambulated (pradakshina) once, Ravi (the Sun) seven times, Vinayak (Ganesh) three times, Vishnu four times, and Siva half (?of that). (126). जैन देवालय में विशेष जैन देवाग्रसंस्थाने स्तोत्रमन्त्रार्चनादिकम् । __नैव पृष्ठिः' प्रदातव्या सन्मुखं द्वारलंघनम् ॥ १२७ ॥ 1. मु. दृष्टिः

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