Book Title: Devta Murti Prakaran
Author(s): Vinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 220
________________ 184 देवतामूर्ति-प्रकरणम् . कृत्वा स्नानं च पिण्डं च हुतं दानं च भोजनम्। गुणितं कोटिवारं च सर्वपुण्यं लभेन्नरः ॥ ११९ ॥ कुरुक्षेत्र में सौ बार, गंगा नदी में हजार बार, नर्मदा में लाख बार और कुरुजांगल में करोड़ों बार स्नान पिंडदान करने एवं दान और भोजनादि से जो फल होता है, उनसे करोड़ गुणा इस शिवलिङ्ग की पूजा करने से होता है। The merit gained from a hundred pilgrimages to Kurukshetra, a thousand to the river Ganga, a lakh (one hundred thousand) to the river Narmada, and a crore (10 million) to Kurujangal (118); where a pilgrim takes ceremonial baths, offers the ritual pinda offerings to ancestors and Manes, gives alms in charity, . performs yagna ceremonies to propitiate the gods, and feeds the poor; – all this is increased one crore times (10 million fold) (over the carlicr described merit gained from installing a "Sadakshinam? Bana-linga) for the human who worships and installs a Bana-linga. (119). स्थापिते चैकलिङ्गे तु देवकल्पाभिवन्दिते। विमानकाञ्चनारूढो सुरवाद्यैस्तु वाद्यते ॥ १२० ॥ जो मनुष्य देव गण से अभिवन्दित एक शिव लिङ्ग की स्थापना करता है, वह सुवर्ण विमान में आरूढ़ होकर स्वर्ग-सुख आदि को प्राप्त करता है। One who installs one such linga gains the acclaim of even the gods. Such a devotee ascends a golden heavenly-chariot (vimana) and attains salvation.(102).. भ्रमते सुरलोके तु च्छिन्नसंसारबन्धनः। सर्वसिद्धिकरं चैव सर्वकामफलप्रदम् ॥ १२१ ॥ जो सब सिद्धियों को करने वाले और सर्व इच्छित फल को देने वाले शिवलिङ्ग की स्थापना करता है, वह मनुष्य संसार के बन्धनों को तोड़कर देवलोक में भ्रमण करता है। One who installs such a Siva-linga, which grants the attainment of the siddhis (all manners of accomplishments and perfection), and provides fulfillment and reward for all deeds,

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