Book Title: Devta Murti Prakaran
Author(s): Vinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

Previous | Next

Page 311
________________ 273 देवतामूर्ति-प्रकरणम् त्रिभङ्गस्थानसंस्थानां महिषासुरसूदनीम् ॥११६ ॥ त्रिशूलं खड्गचक्रौ च बाणं शक्ति च दक्षिणे। वामे च खेटकं चापं पाशमङ्कशमेव च ॥११७ ॥ घण्टा वा परशुं वापि वामहस्ते नियोजयेत्। अधस्तान्महिषं तद्वद् विशिरस्कं प्रकल्पयेत् ।११८ ॥ शिरश्छेदोद्भवं तद्वद् दानवं खड्गपाणिनम्। हृदि शूलेन निर्मिन्नं तिर्यग्दन्तविभूषितम् ॥११९ ॥ रक्तरक्तीकृताङ्गं च रक्तविस्फारितेक्षणाम् । वेष्टितं नागपाशैश्च भृकुटीभीषणाननम् ॥१२० ॥ देव्यास्तु दक्षिणं पादं समं सिंहोपरि स्थितम्। किञ्चिदूर्ध्वं तथा वाममङ्गुष्ठं महिषोपरि ॥१२१ ॥ इति कात्यायनी मूर्तिः। • अब कात्यायनी देवी का स्वरूप कहता हूँ-वह दश भुजा वाली, ब्रह्मा विष्णु और महेश ये तीनों देवों के आकार और रूप सदृशी, जटा वाली, जटा में अर्द्ध चन्द्र का लक्षण वाली, तीन लोचन वाली, पद्म और चन्द्रमा के जैसे मुख वाली, अलसी के पुष्प जैसे वर्ण वाली, प्रसिद्ध सुन्दर नेत्र वाली, नवयौवना, सब आभूषणों से अलंकृत, सुन्दर मुख वाली, पुष्ट और उन्नत स्तन वाली, त्रिभङ्ग स्थान से रही हुई, महिषासुर का नाश करती हुई है। उसके दाहिने हाथों में क्रम से त्रिशूल, खड्ग, चक्र, बाण और शक्ति हैं। बाँयें हाथों में ढाल, धनुष, पाश, अङ्कुश और घण्टा अथवा फरसा है। नीचे मस्तक कटा हुआ महिष (भैंसा) असुर बनाना, तथा खड्ग धारण किया हुआ, मस्तक छेदा हुआ दानव करना। वह तिरछे दाँत वाला और उसकी छाती त्रिशूल से छेदी हुई करना। वह रुधिर से रंगा हुआ 'लाल शरीर वाला, लाल वर्ण की विस्तार पूर्वक खुले हुए नेत्र वाला, नागपाश से बन्धा हुआ, भयङ्कर भृकुटी युक्त मुख वाला दानव करना। देवी का दाहिना 1. मु. निर्यदन्त्रविभूषितम्।

Loading...

Page Navigation
1 ... 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318