Book Title: Devta Murti Prakaran
Author(s): Vinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 313
________________ 275 देवतामूर्ति-प्रकरणम् नृत्य स्वरूप भंगे-भंगे मुखं कुर्याद्धस्तौ दृष्टिं च नर्तने । - हस्तकाद्यं भवेल्लोके कर्मणोऽभिनयेऽखिलम् ॥१२२ ॥ नाच करते समय जैसे-जैसे पैर किया जाता है, वैसे-वैसे मुख, दोनों हाथ और दृष्टि को भी करना चाहिये। लोक में हस्त, मुख और दृष्टि का अभिनय के कार्य में प्रयोजन है। - When making a dancing pose, the face, both the hands and the direction of the eyes should co-ordinate with the movement of the feet. The hands, the face, the eyes-these play an important role in the universe for displaying emotions and moods. (122). यतो हस्तस्ततो दृष्टिर्यतो दृष्टिस्ततो मनः । यतो मनस्ततो भावो यतो भावस्ततो रसः ॥१२३ ॥ जैसे हाथ जिस विषय को. बतलाता है, वैसी दृष्टि भी उस विषय को बतलाती है। इस प्रकार जैसी दृष्टि वैसा मन, जैसा मन वैसा भाव और जैसा भाव वैसा रस मालूम होता है। ... As the hands draw attention to some aspect (i.e. physically), : so should the eyes do the same. For, where the eyes go, there is the mind; where the mind is, there is the bhava (the feeling, the emotions); and where the bhava, there is the rasa-the very essence of everything. (123). आस्येनालम्बयेद गीतं हस्तेनार्थं प्रकल्पयेत् । चक्षुभ्यां च भवेद् भाव: पादाभ्यां तालनिर्णयः ॥१२४ ॥ मुख से गीत, हाथ से अर्थ, दृष्टि से भाव और पैर से ताल का निर्णय जाना जाता है। The facial expression complements or supports the geetam (song), the hands the meaning, the eyes the bhava or mood and emotion, and the feet the tala or rhythm. These are the deciding factors. (124).

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