Book Title: Devta Murti Prakaran
Author(s): Vinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 316
________________ 278 देवतामूर्ति-प्रकरणम् विशिष्ट विवेचन 1. पद्य २२. अपराजित अ. २१२ में विशिष्ट वर्णन लिखा हैगजाननं चतुर्बाहुं त्र्यक्षं पुरुषरूपिणम् । एकदन्तं महश्चण्डं व्यालयज्ञोपवीतिनम् ॥ स्वदन्तं दक्षिणं हस्ते परशुं चापरे करे। . उत्पलं वामहस्ते च मोदकं तस्याधःस्थितम् ॥ सिन्दूरं रक्तकुम्भं च कुंकुमारुणविग्रहम् । मूषकसह कर्त्तव्यं सिद्धिदं सर्वकामदम् ॥ . हाथी के मुख वाला, चार भुजा वाला, तीन नेत्र वाला, पुरुषाकार, एक दाँत वाला, महापराक्रमी, सर्प का यज्ञोपवीत धारण करने वाला, दाहिने एक हाथ में अपना दाँत और दूसरे हाथ में फरसा को, ऊपर के बांये हाथ में कमल और नीचे के हाथ में लड्डु को धारण करने वाला, सिन्दूर वर्ण का कुंभस्थान वाला, कुंकुमवर्ण के शरीरवाला और चूहे की सवारी करने वाला गणेशदेव बनाना, वह सिद्धि और सब इच्छित फल को देने वाला है।

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