Book Title: Devta Murti Prakaran
Author(s): Vinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 282
________________ 246 देवतामूर्ति-प्रकरणम् (Kuber) should be placed in the western direction and Buddhi-devi in the eastern. (32). गणेश के प्रतीहार (द्वारपाल) - सर्वे च वामनाकारा: पुरुषानन-सौम्यभाः । तर्जनी परशुं पद्म-मविघ्नो दण्डहस्तकः ॥३३ ॥ तर्जनीदण्डापसव्ये सभवेत् विघ्याजकः । तर्जनीखड्गवरदं दण्डहस्त: सुवक्त्रकः ॥३४॥ तर्जनीदण्डापसव्ये बलवन्तक दक्षिणे। तर्जनी बाणचापं च दण्डं च गजकर्णकः ॥३५ ॥ तर्जनीदण्डापसव्ये गोकर्णाकृतिपश्चिमम्। . तर्जनी पद्मांकुशं च दण्डहस्त: सुसौम्यकः ॥३६॥ तर्जनीदण्डापसव्ये स चैव शुभदायकः। . पक्षद्वारादिके सर्वे अष्टौ चैव शुभावहः ॥३७॥ गणेश के आठों ही द्वारपाल वाम रूप वाले, पुरुष के मुख वाले और सुन्दर कान्ति वाले बनाना चाहिये। तर्जनी, फरसा, कमल और दण्ड को सव्य क्रम से धारण करने वाला, अविन नाम का द्वारपाल पूर्व द्वार की बाँयी ओर रखना, तर्जनी, दण्ड, फरसा और पद्म को अपसव्य क्रम से धारण करने वाला विघ्न-राज नाम का द्वारपाल पूर्वद्वार की दाहिनी ओर रखना। तर्जनी, खड्ग, वरद और दण्ड को सव्य क्रम से धारण करने वाला सुवक्त्र नाम का द्वारपाल दक्षिण द्वार की बाँयी ओर रखना। तर्जनी, दण्ड, खड्ग और वरद को अपसव्य क्रम से धारण करने वाला बलवन्तक नाम का द्वारपाल दक्षिण द्वार की दाहिनी ओर रखना। तर्जनी, बाण, धनुष और दण्ड को सव्य क्रम से धारण करने वाला गजकर्ण नाम का द्वारपाल पश्चिम द्वार की बाँयी ओर रखना। तर्जनी, दण्ड, बाण और धनुष. को अपसव्य क्रम से धारण करने वाला गोकर्ण नाम का द्वारपाल पश्चिम द्वार १. मु. श्लोक 36-37 नहीं है।

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