Book Title: Devta Murti Prakaran
Author(s): Vinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 307
________________ देवतामूर्ति-प्रकरणम् 269 ___ सव्यापसव्ययोगेन' भवेद् भृकुटिनामतः ।१०२ ॥ तर्जनी वज्रांकुशदण्डं धूम्रको नाम कीर्तितः । सव्यापसव्ययोगन भवेत्कंकदनामकः ॥१०३ ॥ तर्जनीत्रिशूलहस्तं खट्वाङ्गं दण्डमेव च। रक्ताक्षो नाम तस्यैव सव्यापसव्ये सुलोचन: ॥१०४ ॥ - इति चण्डिका प्रतीहाराः॥ अब चण्डिका देवी के प्रतीहार/द्वारपालों का स्वरूप अनुक्रम से कहता हैं वेताल, करट, पिंगाक्ष, भृकुटि, धूम्रक, कंकद, रक्ताक्ष और सुलोचन ये आठ द्वारपालों के नाम हैं। ये भयङ्कर दाँत वाले और क्रोध से स्फुरायमान हो रहे हैं। सफेद दाँतों वाले हैं। तर्जनी, खट्वाङ्ग, डमरु और दण्ड को सव्यक्रम से धारण करने वाला वेताल और इन शस्त्रों को अपसव्य से धारण करने से करटक नाम से दोनों पूर्व द्वार के द्वारपाल हैं। अभय, खड्ग, ढाल, और दण्ड को सव्यक्रम से धारण करने वाला पिंगल और इन शस्त्रों को अपसव्य क्रम से धारण करने से भृकुटि ये दोनों दक्षिण द्वार के द्वारपाल हैं। तर्जनी, वज्र, अङ्कुश और दण्ड को सव्य क्रम से धारण करने वाला धूम्रक और अपसव्य क्रम से धारण करने वाला कंकद ये दोनों पश्चिम द्वार के द्वारपाल हैं। तर्जनी, त्रिशूल, खट्वाङ्ग और दण्ड को अपसव्य क्रम. से धारण करने वाला रक्ताक्ष और अपसव्य क्रम से धारण करने से सुलोचन ये उत्तर द्वार के द्वारपाल हैं। . I (Mandan) shall now describe the guardians of the entrances to Chandika shrines in the stipulated order. These door-keepers are called Vetal, Karat, Pingaksh, Bhrikuti (99), Dhoomrak, Kankad, Raktaksh, and Sulochan. They have terrible large teeth and faces that quiver with anger. (100). ____Holding a raised forefinger (tarjani), a Khatvanga club, a damroo drum and a danda respectively stands the door-keeper . called Vetal (to the left of the eastern portal). Opposite him (at the right side of the portal) is Kartak holding the same attributes 1. 2. मु. अभयापसव्ययोगेन। मु, ककुदनामक।

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