Book Title: Devta Murti Prakaran
Author(s): Vinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 233
________________ देवतामूर्ति-प्रकरणम् सद्य, वाम, घोर, तत्पुरुष और पांचवा ईशान ये मुख लिङ्गों का स्वरूप योगियों को भी समझ में नहीं आता । The different Mukha-lingas are named (i) Saddhyo (jat), (ii) Vama, (iii) Aghor, (iv) (Tat) Purusha, and (v) Ishan. The form of the fifth is difficult for even yogis to comprehend fully. (155). Thus ends the description of peethikas, Mukha-lingas and similar aspects. एक द्वार शिवायतन 197 वामे गणाधिपत्यं च दक्षिणे पार्वती स्मृता । नैर्ऋत्ये भास्करं विद्यात् वायव्ये च जनार्दनम् ॥ १५६ ॥ मातृभिर्मातृसंस्थानं कारयेद् दक्षिणां दिशम् । सौम्ये शान्तिग्रहं कुर्याद् यक्षाधीशं च पश्चिमे ॥ १५७ ॥ एक द्वार वाले शिवायतन में बाँयी ओर गणाधिप और दाहिनी ओर पार्वती, नैर्ऋत्य कोण में सूर्य, वायु कोण में जनार्दन, दक्षिण दिशा में मातृकादेवी, उत्तर दिशा में शान्तिग्रह और पश्चिम में यक्षाधिप की स्थापना करना । Remember that (in a Siva-temple possessing one door) Ganesh, the Lord of the Ganas (Ganadhipati), is to the left and Parvati to the right. Bhaskar, the Sun, is to the south-west (Naittrytya) and Janardhan (Vishnu) to the north-west (Vayu-kona ) (156). The Mother-goddesscs (Matris) are to the south and the auspicious planet Shanti (? Mercury) to the north, while to the west is the place of the Lord of the Yakshas, Kuber. (157). चतुर्मुख शिवायतन 1. वामे स्नानगृहं कुर्याद् यशो द्वारं च पश्चिमे मध्ये रुद्रः प्रकर्त्तव्यो मातृस्थानं च दक्षिणे ॥ १५८ ॥ - मु. दक्षिणे ।

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