Book Title: Devta Murti Prakaran
Author(s): Vinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 267
________________ देवतामूर्ति-प्रकरणम् 231 bestow peace everywhere. (73). यक्षरूपाविकाराश्च निधिहस्ताः शुभोदया:। सुनामो दुन्दुभिश्चैव सर्वे शान्तिप्रदायकाः ॥७४ ॥ उत्तर दिशा के द्वार के दाहिनी ओर सुनाम नाम का और बाँयी ओर दुदुभि नाम का द्वारपाल है। ये यक्ष के स्वरूप वाले, विकार रहित, हाथ में निधि (धन) को धारण करने वाले, शुभ उदय वाले हैं और सब को शान्ति देने वाले हैं। Sunabh and Dundubhi (who guard the right and left respectively, at the northern entrance) are of the form and size of yakshas. Holding nidhi (treasure) in their hands, they give rise to all auspiciousness. They bestow peace everywhere. (74). इत्यष्टौ च प्रतीहारा जिनेन्द्रस्य च शान्तिदाः । नगरादिपुरग्रामे सर्वविघ्नप्रणाशना: ॥७५ ॥ जिनेन्द्र देव के ये आठों प्रतीहार शान्ति देने वाले हैं। तथा नगर, पुर और गाँव आदि में सबं विघ्नों को नाश करने वाले हैं। These are the eight guardians or door-keepers of the Jinendras. They grant peace and destroy all impediments and obstructions-whether. occuring in towns or cities or villages. (75). मुक्त्यर्थे विश्वमेतद् भ्रमति च बहुधा देवदैत्या: पिशाचा रक्षोगन्धर्वयक्षा नरमृगपशवो नैव मुक्ति विजग्मुः । एक: श्रीवीतराग: परमपदसुखे मुक्तिमार्गे विलीनो, वन्द्यस्तेनाद्यजैन: सुरगणमनुजैः सर्वसौख्यस्य हेतुः ॥७६ ॥ इति श्रीक्षेत्रात्मज-सूत्रमृन्मण्डनविरचिते वास्तुशास्त्रे रूपावतारे जिनमूर्ति-चतुर्विंशतियक्षयक्षिण्यधिकारो नाम सप्तमोध्यायः ॥७॥ यह विश्व मुक्त के लिए भ्रमण कर रहा है, तो भी बहुत से देव, दैत्य, पिशाच, राक्षस, गंधर्व, यक्ष, मनुष्य, मृग और पशु मुक्त को प्राप्त नहीं कर सके। केवल एक श्री वीतराग देव ही सुखमय ऐसे परमपद वाले मुक्ति मार्ग में लीन है, इसलिये समस्त सुख के हेतुभूत जैसे जिनदेव देव-मनुष्यगणों से वन्दनीय हैं। 1. मु. में ७४ वां पद्य नहीं है।

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