Book Title: Devta Murti Prakaran
Author(s): Vinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 234
________________ 198 देवतामूर्ति-प्रकरणम् वामे देवी महालक्ष्मीरुमा वै भैरवस्तथा। ब्रह्मा विष्णुस्तथा रुद्रः पृष्ठदेशे तु कारयेत् ॥ १५९॥ चन्द्रादित्यौ स्थितौ कणें आग्नेय्यां स्कन्दमेव च। ईशाने विघ्नराजं तु धूप्रमीशानगोचरे ॥ १६० ॥ चतुर्भुज शिवायतन में बाँयी ओर स्नानग्रह और पश्चिम में यशों द्वार ... करना। मध्य भाग में रुद्र स्थापन करना, दक्षिण दिशा में मातृदेवी स्थापना। बाँयी ओर देवी महालक्ष्मी उमादेवी और भैरव की स्थापना करना। ब्रह्मा, विष्णु और . महादेव को, पिछले भाग में स्थापना। चंद्रमा और सूर्य कोने में स्थापना। अग्नि . कोण में स्कन्द को स्थापना। गणेश को ईशान कोण में रखना और धूम्र देव . को नैर्ऋत्य कोण में स्थापना। In a Chaturamukha Siva temple, make the area for ritual bathing and annointing to the left and to the west have the gateway of fame- the Yashodvara. Install Rudra in the centre and the Mother-goddesses in the southern direction. (158). . . To the left place Mahalakshmi, Uma and Bhairav. To the rear of Rudra, Brahma and Vishnu should be installed. (159). Chandra, the Moon, and Aditya, the Sun, should be placed at the hypoteneuse (of the south-east) with Skanda to the south-east too. Ganesh, the Vighnaraj, should be in the north-eastern quarter, and Dhumra also in that vicinity. (159). शिव के आठ प्रतीहार-पूर्व दिशा का प्रतीहार मातुलुङ्ग च नागेन्द्रं डमरु चाक्षसूत्रकम् । नन्दी मुकुटशोभाढ्यः सर्वाभरणभूषितः॥ १६१ ॥ खट्वाङ्गं च कपालं च डमरुं बीजपूरकम्। दंष्ट्राकरालवदनं महाकालं तु दक्षिणे ॥ १६२॥ . .

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