Book Title: Devta Murti Prakaran
Author(s): Vinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 216
________________ 180 देवतामूर्ति-प्रकरणम् जो शिवलिङ्ग तीन या पांच बार तोलने से बराबर तोल बनता न हो अर्थात अलग वजन मालूम पड़े तो वह बाणलिङ्ग समझना चाहिये। बाण के सब पाषाण लिङ्ग समझना चाहिये। Examination of a Bana-lingu - A Siva-linga which, upon being weighed 3 or 5 times, (or three of three times five; i.e. 3x15, times?) does not show the same weight cach time (ie. provides different results upon weighing), should be known to be a Bana-linga. The others are all Pashana or stone lingas. (105). वर्जनीय बाण लिङ्ग . . . स्थूलं खंडं च दीर्घ च स्फुटितं छिद्रसंयुतम्।. बिन्दुयुक्तं च शूलाग्रं कृष्णं च चिपिटं तथा ॥ १०६ ॥ वक्रं च मध्यहीनं च बहुवर्णं च यद् भवेत्। वर्जयेन्मतिमांल्लिङ्गं सर्वदोषकरं यतः ॥ १०७॥ जो बाणलिङ्ग स्थूल, खंडित, दीर्घ, टूटा हुआ, छिद्र वाला, बिन्दु वाला, त्रिशूल के अग्रभाग जैसा, कृष्ण वर्ण का, चपटा, टेढ़ा, मध्य में पतला और बहुत वर्ण वाला हो, वह लिङ्ग बुद्धिमान पुरुष छोड़ दे, क्योंकि ऐसा लिङ्ग सर्वतः दोषकारक है। A Bana-linga which is either desecrated, or larger and longer (than the norm), or broken, full of perforations, or has many holes and dots, is like the front part of a trident, black or dark (krishnam) in colour and is flat (106); and which is crooked and thinner (than the norm) in its central or middle portion, and is multi-coloured, should be avoided. Such a Bana-linga, according to the wise, is full of all manners of faults, and is to be abandoned (being unfit for purposes of worship). (107). पाषाण का पूज्यभाव महानदी समुद्भूतं सिद्धक्षेत्रादिसम्भवम्। पाषाणं परया भक्त्या लिङ्गवत् पूजयेत् सदा ॥ १०८ ॥ 1. मु. वरं।

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