Book Title: Devta Murti Prakaran
Author(s): Vinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 217
________________ देवतामूर्ति-प्रकरणम् महानदी और सिद्ध क्षेत्र आदि में उत्पन्न हुए पाषाण को भी परम भक्ति से लिङ्ग की तरह हमेशा पूजना चाहिये । Stones originating from the river Mahanadi, the Siddha areas and other holy and sacred places are always worthy of worship with the utmost devotion (bhakti) just like the most highly venerated lingas. (108). जैसा तैसा रहा हुआ बाणलिङ्ग का प्रशस्तपन पुष्पपीठमपीठं वा मन्त्रसंस्कारवर्जितम् । भुक्तिमुक्तिकरं बाणं सर्वप्रासादपीठकम् ॥ १०९ ॥ पीठ वाला या पीठ बिना का तथा मन्त्रों के संस्कार से रहित जैसा बाण - लिङ्ग सुख और मुक्ति का देने वाला है । 181 Bana-lingas with or without pushp-peetha or pedestals, or which are without the rituals involving sacred mantras (incantations), lead to salvation and wordly enjoyment. ( 109 ). सुखदायकं बाणलिङ्ग ऊर्ध्वस्थूलं कृशं चाधो यदा लिङ्गं निवेशयेत् । तदा भोगं विजानीयात् पुत्रपौत्रश्च वर्द्धते ॥ ११० ॥ जो बाणलिङ्ग ऊपर के भाग में स्थूल और नीचे के भाग में पतला हो, तो वह सुख देने वाला और पुत्र पौत्र को बढ़ाने वाला है । Where there resides a Bana-linga which is broader at the top and narrower towards the base, there comes the benediction of happiness and the blessing of (an increase in the number of) sons and grandsons. (110). ऊर्ध्वकृशं यदा लिङ्गं स्थूलं चाधो निवेशयेत् । तदा मुक्ति विजायीयात् संसारोच्छित्तिकारणम् ॥ १११ ॥ जो बाणलिङ्ग ऊपर के भाग में पतला और नीचे के भाग में मोटा हो तो वह मुक्ति को देने वाला और संसार का नाश करने वाला है 1

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