Book Title: Devta Murti Prakaran
Author(s): Vinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 208
________________ 172 देवतामूर्ति-प्रकरणम् inner sanctuary of a Sivalaya (temple of Siva) is called Kanishtha, 'while one that is three-fifth (3/5th) of the garbhgriha is Shreshtha (i. e. best). A medium or Madhyam linga is of the scale of five-nineth (5/9th) of the sanctorum. If the sanctorum is divided into eight parts, a linga of any of these parts is Madhyam scale linga. (85). Shreshtha, Madhyam and Kanishtha - these are the three distinctions respectively used for the scale of Nagar Siva-linga within the Nagar category of temples. (86). विकारांशे तदायामे भूतवेदाग्निविस्तरम्। जयदं पौष्टिकं सार्द्धकामकं नागरे विदुः॥ ८७ ॥ शिवलिङ्ग की लंबाई का सोलह भाग करके उनमें से पांच भाग, चार भाग और तीन भाग के विस्तार वाले क्रम से नागर जाति के जयद, पौष्टिक और सार्द्धकामक, नाम के लिङ्ग है। अर्थात् पांच भाग.के विस्तार का जयद, चार भाग के विस्तार वाला पौष्टिक और तीन भाग के विस्तार, वाला सार्चकामक नाम के लिङ्ग हैं। From a prescibed scale if the length of the Siva-lingas are of five, sour and three parts respectively, the lingas should be known as Jayad, Paushtika and Sardhakamaka Siva-lingas of the Nagar category. (87). द्राविड लिङ्ग मान गर्भे त्रिसप्तभागे तु दशांशो द्राविडेऽधमः । त्रयोदशांशकं श्रेष्ठं मध्येऽष्टांशेन पूर्ववत् ॥ ८८ ॥ त्रिसप्तांशे निजायामे षट्पञ्चचतुरंशकम् । जयदादिविशालं तु पूर्ववत् द्राविडे मतम् ॥ ८९॥ द्राविड प्रासाद के गर्भ का एकबीस भाग करके दश भाग का लिङ्ग कनिष्ठ मान का और तेरह भाग का उत्तम लिङ्ग है। और उसके आठ भाग करके किसी Nagar, Veysar and Dravida are three Indian architectural styles.

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