Book Title: Devta Murti Prakaran
Author(s): Vinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 207
________________ 171 देवतामूर्ति-प्रकरणम् to six, or seven-and-a-half, or nine parts of the length respectively. (82). When the Vishkambha or diameter of the Siva-linga is nine parts, then eight-and-a-hall parts of the Siva-linga's length (of twenty-four parts). comprise the Pitamah (Brahma) portion, eight parts the Narayana (Vishnu) portion, and seven-and-a-half parts the Maheshwar (Siva) portion. (83). शिवलिङ्ग में ब्रह्मा आदि का भाग ब्रह्मांशश्चतुरस्रोऽधो मध्येऽष्टास्रस्तु वैष्णवः । पूजाभाग: सुवृत्त: स्यात् पीठोज़ शङ्करस्य च ॥ ८४ ॥ लिङ्गों के नीचे का समचोरस ब्रह्म भाग, विष्णु भाग मध्य का आठ कोण वाला और शङ्कर का पूजा भाग पीछे के ऊपर का गोल भाग समझना। The Brahma, Vishnu and Shankar portions of a Siva-linga are the following :-Brahma is the four-sided lower portion, Vishnu the central eight-sided portion, and the rounded upper portion which is worshipped, and which rises up from the peeth or pedestal, is Shankar. (84). नागरलिङ्ग का मान गर्भाई कन्यसं श्रेष्ठं पञ्चत्र्यंशं शिवालयम्। भवन्ति नव लिङ्गानि तयोर्मध्येऽष्ट भाजिते ॥ ८५ ॥ श्रेष्ठमध्यकनिष्ठानि त्रि-त्रिभेदानि तानि हि। नागरे नागरस्योक्तं मानं लिङ्गस्य मन्दिरे ॥ ८६ ॥ प्रासाद गृह के आधे मान का शिवलिङ्ग कनिष्ठ प्रासाद का पांच भाग करके तीन भाग का श्रेष्ठ है, नव भाग करके पांच भाग का मध्यम है, इसका आठ भाग करके सभी भाग का लिङ्ग मध्यम मान का होता है। श्रेष्ठ, मध्य और कनिष्ठ इन. तीन भेदों से नवग्रह होते हैं। नागर जाति के प्रासाद में यह नागरलिङ्ग का मान कहा है। A Siva-linga which is half the size of the garbhagriha or

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