Book Title: Devta Murti Prakaran
Author(s): Vinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 190
________________ 154 देवतामूर्ति प्रकरणम् of the attendants of Siva) to completc thc composition. (33). कृष्णशङ्कर कृष्णशंकरमतो वक्ष्ये कृष्णाद्धेन तु संयुतम्। कृष्णार्द्ध मुकुटं कुर्याज्जटाधारं च दक्षिणे ॥ ३४ ॥ कुण्डलं दक्षिणे भागे वाझे मकरकुण्डलम्। अक्षमालां त्रिशूलं च चक्रं वै शङ्खमेव च ॥ ३५ ॥ कृष्णशङ्कर की मूर्ति का स्वरूप कहता हूँ- मूर्ति का बॉयी तरफ का अर्द्ध भाग कृष्ण वर्ण का बनाना। इस कृष्णार्द्ध के ऊपर मुकुट और दाहिने अर्द्ध भाग पर जटा बनाना। दाहिने भाग में कुण्डल और बायें भाग में मकर का कुण्डल करना। हाथों में अनुव्रम से अक्षमाला, त्रिशूल और शङ्ख धारण किया हुआ बनाना। Krishna-Shankur -- The image of Krishna-Shankar is now described. Hall the idol should be like Krishna and the other half like Siva. The Krishna half of thc statuc (i.e. the left side) should be adorncd with a mukut (crown) and the other half (the right) with the matted jata locks of Shankar (34). There is a kundala earring in the right car and a makara-kundala carring in the left. The four hands of the statue possess a string of prayer-beads, a trident, a disc and a conchshell respectively. (35). कृष्णकार्तिकेय: पद्मशक्ति-खेटशङ्ख मूर्ति: स्यात् कृष्णकार्तिकी। कमल, शक्ति, ढाल और शङ्ख को धारण करने वाली कृष्ण कार्तिकेय की मूर्ति है। Krishna-Kartikeya -- The idol of Krishna-Karttikeya possesses a lotus (padma),

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