Book Title: Devta Murti Prakaran
Author(s): Vinaysagar, Bhagvandas Jain, Rima Jain
Publisher: Prakrit Bharati Academy

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Page 203
________________ देवतामूर्ति-प्रकरणम् . 167 लिङ्गानि नवहस्तान्तं- . एक हाथ से नव हाथ तक ऊँचाई में पाषाण का शिवलिङ्ग बना सकते हैं। परन्तु एक हाथ से कम पाषाण लिङ्ग नहीं करना चाहिये। एक हाथ से लेकर चरण, हाथ की वृद्धि नव हाथ तक करने से तेतीस प्रकार के लिङ्ग होते हैं और एक हाथ से लेकर एक २ हाथ की वृद्धि नव हाथ तक करने से नव प्रकार के लिङ्ग होते हैं। Stone lingas should be from one hasta to nine hastas in height. A stone linga may not be made less than one hasta (70). By adding a quarter (of 1 hasta) at a time to one hasta, thirty-three types of stone Siva-lingas can be made; while by adding one hasta at a time (upto the permitted maximum of nine hastas) nine types of stone Siva-lingas can be made. (71a). पाषाण लिङ्ग के चौतीस नाम श्रीभवं तूद्भवं भवम् ॥ ७१॥ . भयहृत् पाशहरणं पापहस्तेज उच्यते। ततः परं महातेजा परापरमहेश्वरम् ॥ ७२ ॥ शेखरं च शिवं शान्तं महाह्लादकरं ततः। रुद्रतेज: सदात्मजं वामदेवमघोरेश्वरम् ॥ ७३ ॥ तत्पुरुषं तथेशानं मृत्युञ्जयविजयक्रमात् । किरणाक्षमहोरास्त्रं श्रीकण्ठं मुनिवर्द्धनम् ॥ ७४ ॥ पुण्डरीकं सुवक्त्राख्यं उमातेजं विश्वेश्वरम्। त्रिनेत्रं त्र्यम्बकं चैव महाकालं च नामतः ॥ ७५ ॥ श्रीभव, उद्भव, भव, भयहत्, पाशहरण, पापहन्ता, तेज, महातेज, परापर, महेश्वर, शेखर, शिव, शान्त, महाह्लादकर, रुद्रतेज, सदात्मज्ञ, वामदेव, अघोर, ईश्वर, तत्पुरुष, ईशान, मृत्युञ्जय विजय, किरणाक्ष महोरास्त्र, श्रीकंठ, मुनिवर्द्धन, पुण्डरीक, 1. मु, मनोहादकरं।

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