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अनुवाद में किसी यति निर्मित संस्कृत टीका की छाया कर जो मांस विधान लिख दिया है उसका खण्डन कर दूंगा । आपके सत्य अर्थ को सुनकर डाकर हर्मन का आत्मा प्रसन्न हो गया । और वह कई दिन तक आपकी सेवाकर अपने यथा स्थान को चला गया ।
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लेजिस्लेटिव कोंनसिल के सभासद और मुजप्फर नगर के रईस लाला सुखबीरसिंहजी भी आपके दर्शन दो बार कर चुके हैं और आपकी प्रशंसा में आपने कई लेख भी लिखे हैं । जो कोई भी योग्य विद्वान् और कुलीन पुरुष आपके दर्शन करते हैं समझ जाते हैं कि आपके समान सच्चा त्याग मूर्त्ति आजकल और कोई भी शुद्ध साधु नहीं है । आपकी जन्म भूमि बीकानेर राज्यान्तर्गत छापर नामक नगर है | आपका पवित्र जन्म ओशवंश के चौपड़ा कोठारी नामक जाति में श्री मूलचन्द्रजी के गृह में सं० १९३३ फाल्गुण शुक्ला २ के दिन श्री श्री श्री १०८ महासती छोगांजी की पवित्र कुक्षि में हुआ था । आपकी माताजीने भी आपके साथ ही दीक्षा ली थी । उक्त आपकी माताजी अभी बीदासर नगर में विद्यमान हैं जोकि अति बृद्ध हो जाने के कारण विहार करने में असमर्थ हैं।
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" हि कस्तूरिका गन्ध: शपथेनाऽनुभाव्यते” कस्तूरीके सुगन्धित्व सिद्ध करनेमें शपथ खाने की कोई आवश्यकता नहीं है । उसका गन्ध ही उसकी सिद्धि का पर्याप्त प्रमाण है । यद्यपि श्री भिक्षुगणी से लेके श्रीकालू गणी तक का समय और उसका जाज्वल्यमान तेज स्वतः ही तेरापन्थ समाज के धर्माचार्यों को क्रमानुक्रम भगवान् का पदाधिकारी होना सिद्ध कर रहा है । तथापि उसकी सिद्धि की पुष्टि में शास्त्रोंका भी प्रमाण दिया जाता है । पाठक गण पक्षपात रहित हृदयसे इसका विचार करें।
भगवान् श्रीमहावीरजी स्वामीके मुक्ति पधारनेके पश्चात् १००० वर्ष पर्यन्त पूर्वका ज्ञान रहा । ऐसा “भगवती श० २० उ० ८” में कहा है ।
तत्पश्चात् २००० वर्ष के भस्मग्रह उतरनेके उपरान्त श्रमण निर्ग्रन्थ की उदय २ पूजा होगी। ऐसा “कल्प सूत्र” में कहा है ।
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सारांश यह है कि - भगवान् के पश्चात् २६१ वर्ष पर्यन्त शुद्ध प्ररूपणा रही । और पश्चात् १६६६ वर्ष पर्यन्त अशुद्ध वाहुल्य प्ररूपणा रही । अर्थात् दोनोंको मिलाने से १६६० बर्ष हुआ ! उस समय धूमकेतु ग्रह ३३३ वर्षके लिये लगा । विक्रम सम्बत् १५३१ में "लंका" मुंहता प्रकट हुआ । २००० वर्ष पूर्ण हो जाने से