Book Title: Bhram Vidhvansanam
Author(s): Jayacharya
Publisher: Isarchand Bikaner

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Page 15
________________ अद्वितीय अभ्यास था। आपने अपने नवीन रचित ग्रन्थों से जैसी जिन धर्म की महिमा वढ़ाई है उसका वर्णन नहीं हो सक्ता । आपकाशुभ जन्म मारवाड़ में “रोयट" नामक ग्राम में ओशवंशस्थ गोलछा जाति में सम्बत् १८६० आश्विन शुक्ला २ के दिन हुआ था। आपके पिता का नाम आईदानजी और माता का नाम कलुजी था। आपने कल्प कल्पान्तरों के लिये "श्रीभगवती की जोड़" आदि अनेक रचना द्वारा भूमिपर अपना यश छोड़ कर सम्वत् १९३८ भाद्रपद कृष्ण १२ के दिन स्वर्ग के लिये प्रस्थान किया। पूज्य श्रीजयाचार्य के अनन्तर पञ्चम पट्ट पर थी मघवा गणी (मघराजजी) सुशोभित हुए। आपकी शान्ति मूर्ति और ब्रह्मचर्यका तेज देख कर कवियों ने आपको मघवा ( इन्द्र ) की ही उपमा दी है। आप व्याकरण काव्य कोषादि शास्त्रों में प्रखर विद्वान थे । आपका शुभ जन्म बीकानेर राज्यान्तर्गत बीदासर नामक नगर में ओशवंशस्थ वेगवानी नामक जाति में संम्वत् १८६७ चैत्र शुक्ला ११ के दिन हुआ। आपके पिताका नाम पूरणमलजी और माता का नाम वन्नाजी था। आप आनन्द पूर्वक जिन मार्गकी उन्नति करते हुए सम्बत् १९४६ चैत्र कृष्ण ५ के दिन स्वर्ग के लिए प्रस्थित हुए। पूज्य श्रीमघवा गणी के अनन्तर छठे पट्ट पर श्रीमाणिकचन्द्रजी महाराज विराजमान हुए । आपका शुभ जन्म जयपुर नामक प्रसिद्ध नगर में संवत् १९१२ भाद्र कृष्ण ४ के दिन ओशवंशस्थ खारड श्रीमाल नामक जाति में हुआ। आपके पिता का नाम हुकुमचन्द्रजी और माता का नाम छोटांजी था। आप थोड़े ही समय में समाजको अपने दिव्य गुणों से विकाशित करते हुए संवत् १९५४ कार्तिक कृष्ण ३ के दिन स्वर्ग वासी हुए। पूज्य श्रीमाणिक गणी के अनन्तर सप्तम पट्टपर श्री डालगणी महाराज विराजमान हुए आपका शुभ जन्म मालवा देशस्थ उज्जयिनी नगर में ओशवंशस्थ पीपाड़ा नामक जाति में संवत् १६०६ आषाढ़ शुक्ला ४ के दिन हुआ। आपके पिता का नाम कनीराजी और माता का नाम जडावांजी था जिनलोगोंने आपका दर्शन किया है वे समझते ही हैं कि आपका मुख मण्डल ब्रह्मचर्यके तेज के कारण मृगराज मुख सम जगमगाता था। आप जिनमार्ग की पर्ण उन्नति करते हुए संवत् १९६६ भाद्र पद शुक्ला १२ के दिन स्वर्ग को पधार गये।

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