Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 01
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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(१२)
भारत-भैषज्य-रत्नाकर
त्वपोशकासावररोध्रपलाशनन्दीवृक्षाः पद्मकेश- [२४] अर्कादि क्वाथ: (२) राणि चेति ।
(वृ० नि० २०, यो० र०, भा० प्र० । सन्नि०) पाठा, धायके फूल, मजीठ, अरलु(श्योनाक),
भास्वन्मूलं जीरकव्योषमार्गी मुलैठी, बेलगिरी, लोध्र,ढाककीछाल, तुनकीछाल और
व्याघ्रीशृङ्गीपुष्करं गोजलेन ॥ पाकेशर । इन औषधियोंके समूहको "अम्बष्टादिगण" कहते हैं । (यह गण पक्वातिसार नाशक,
सिद्धं सद्यः शीतगात्रातिमोहपित्तशामक और व्रणरोपक है)
श्वास श्लष्मोद्रेककासानिहन्ति ।। [२२] अर्कादि क्वाथः (१)
आककी जड़, जीरा, त्रिकुटा (सोंठ, काली
मिर्च और पीपल) भारंगी, कटेली, काकड़ासिंगी, (वै० जी०, यो० २० । वरा०)
पोखर मूल । गोमूत्रमें इनका काढ़ा बनाकर पीनेसे अर्कानंताकिरातामरतरुरसनासिंदुवारोग्रगंधा
| शीताङ्ग सन्निपात, अत्यन्त मोह, श्वास, कफ और तर्कारीशिग्रुपंचोषणघुणदयितामार्कवाणांकषायः सबस्तीयांत्रिदोषाऽपहरति धनुर्मारुतं दंतबंधम् |
खांसीका शीघ्र नाश होता है। शेत्यंगात्रेषगा श्वसनकसनक सूतिकावातरोगान [२५] अकोदि क्वाथः (३)
ककी जड़, अनन्तमूल, चिरायता, देव- (वृ० नि० २०, यो० र० । सन्निपा०) दारु, रास्ना, सफेद संभालू, बच, अरणी, सौंज- अर्कग्रंथिकशिग्रुदारुचविकानिर्गुण्डिकापिप्पलीनेकी छाल, पंचोषण (पीपल, पीपला मूल, चव, रास्ना,गपुनर्नवानलवचाभूनिवशुंठी कृतः॥ चीता, सोंठ) अतीस और भांगरा । इनका क्वाथ, | क्वाथःसंहरति त्रिदोषमखिलं स्वापानिलंसूतिकाम् भयङ्कर सन्निपात, धनुर्वात, दन्तबन्ध, तीव्र शीत, | नानामारुत्शैत्यशान्तिकृदपस्मारस्मरत्र्यंबकः।। श्वास, खांसी, सूतिकारोग तथा वायुके रोगोंका आककी जड़, पीपलामूल, सौंजनेकी छाल, नाश करता है।
दारुहल्दी, चव्य, संभाल, पीपल, रास्ना, भांगरा, [२३] अम्लीका पानकम्
पुनर्नवा, चीता, बच, चिरायता और सोंठ । इनका (भा० प्र०)
क्वाथ सन्निपात ज्वर, तंद्रा, वायु, सूतिका रोग,अनेक पकाम्लिका सिता शीतवारिणा वस्त्रगालिता।
प्रकारके वातरोग, शीत और अपस्मार (मिरगी) का एलालवङ्गकर्पूरमरिचैरवधूलिता।
नाश करता है। पानफस्यास्य गण्डूषं धारयित्वा मुखे मुहुः। अरुचिं नाशयत्येव पित्तं प्रशमयेत्तथा ॥ x गण्डूष-स्नेह, दूध, कपाय आदि द्रव
पक्की इमली और मिश्री को ठंडे पानीमें भिगो | द्रव्य मुखमें धारण करनेका नाम गण्डूष है। कर मल और छान कर उसमें इलायची. लौंगकर इसमें द्रव पदार्थ ५ तोले और चूर्णादि मिलाना और मरिचका चूर्ण डाल कर बार बार गण्डूषx
| हो तो १ तोला लेना चाहिये। जब तक
मुख कफ़से न भर जाय और नेत्र तथा नासि. लेनेसे अरुचि का नाश होता है और पित्तको कासे पानी न निकलने लगे तब तक गण्डूशमन करता है।
षक पदार्थको मुखमें भरे रहना चाहिये ।
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