________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्र एकत्रिंशत्तम-अनुयोगद्वार सूत्र चतुर्य मूल 60%80 से किं तं भविय सरीर दव्वस्सयं ? भविय सरीर दव्वावस्सयं जे जीवे जोणि जम्मण निक्खंते इमेणं चेव आत्तएणं सरीर समुस्सएणं जिणोवदिट्टे भावणं आवस्सएतिपयं, सेयकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ, जहा को दिटुंतो ? __ अयं महु कुंभे भविस्सइ, अयं घयकुंभे भविस्सइ, से तं भवियसरीर दवावसयं है // 15 // से किं तं जाणय सरीर भविय सरीर वतिरित्तं दव्वावस्सयं ? जाणय सरीर भविय सरीर वतिरित्तं दवावस्सयं तिविहं पण्णत्तं तंजहा-लोइयं, कुप्पावयणियं, किसे कहते हैं ? प्रश्व-अहो शिष्य ! जो जीव योनि द्वारा जन्म को प्राप्त हो गया है और आगामी कालमें अपने शरीर समुदाय कर जिनेन्द्र उपष्टि भाव से 'आवश्यक' ऐसे पद सीखेगा परंत वर्तमान काल में उसने आवश्यक के पद को धारन नहीं किया है. इस का दृष्टांत देते हैं जैसे नये 4' घट को देख कर कोई कहे कि यह घृत के लिये घट होगा, यह मधु के लिये घट होगा. ऐसे ही यह भी आवश्यक का ज्ञाता होगा. यह भव्य शरीर द्रव्य आवश्यक हुवा // 15 // प्रश्न-अहो भगवन् ! ज्ञA शरीर और भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्य आवश्यक किसे कहते हैं ? उत्तर-ज्ञ शरीर व भव्य र व्यतिरिक्त द्रव्य आवश्यक के तीन भेद कहे हैं. तयथा-१ लौकिक, 2 कु भावयनिक और 3 लोको-17) अर्थ 100 आवश्यक पर चार निक्षप4.90 For Private and Personal Use Only