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अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016
छोड़ देता है तो अनेक समस्याएँ समाप्त हो जाती हैं। तनावमुक्त जीवन :
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ज्ञानी में कर्तृत्व का अहंकार नहीं होता है इसलिए उसमें मानसिक तनाव पैदा नहीं होता है। समाज की अपेक्षा ज्ञानी और अज्ञानी दोनों ही वस्तुओं और क्रियाओं के कर्ता हैं। उन दोनों में भेद अंतरंग की अपेक्षा से होता है। एक अहंकारशून्य जीव है, तो दूसरा अहंकारमय। एक मानसिक तनाव से मुक्त है, तो दूसरा मानसिक तनाव से घिरा हुआ। व्यक्ति जब परतंत्रता का जीवन जीता है तब वह परभावों और परद्रव्यों से एकीकरण कर लेता है। इस एकीकरण के कारण उसमें आसक्ति उत्पन्न होती है और उनके विषय में आसक्तिपूर्ण चिन्तन की धारा उसमें प्रवाहित होने लगती है। इस आसक्ति से ही उसमें काम, क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, कुटिलता आदि उत्पन्न होते हैं। जिनके फलस्वरूप वह मानसिक तनाव से ग्रस्त रहता है। डॉ. कमलचन्द सोगाणी के अनुसार आत्मा के कर्मों के आस्रव, बंध और उदय के कारण मानसिक तनाव होता है और व्यक्ति परतंत्र बन जाता है। इसके अलावा राग, द्वेष, मोह, कषाय इत्यादि भावों को भी उन्होंने 'मानसिक तनाव' की संज्ञा दी है। परतंत्र व्यक्ति कर्मों का कर्ता, उनसे उत्पन्न कषायों (संवेगों) का कर्ता तथा शुभ-अशुभ भावों का कर्ता अपने आपको मानने के कारण सुख-दुःखमय परिणामों को भोगने वाला होता है । इस प्रकार वह दोहरा जीवन जीता है और मानसिक तनाव में फँस जाता है। 4 स्पष्ट है कि समयसार में तनावमुक्ति या बुनियादी और निराला तरीका बताया गया है।
निर्भयता की शिक्षा :
संसार अनेक प्रकार के भयों से परिपूर्ण है। व्यक्ति तरह-तरह के ज्ञात-अज्ञात, सच्चे - झूठे, वर्तमानकालीन और भविष्यकालीन भयों से ग्रसित रहता है। आत्म - स्वतंत्रता का बोध जिस प्रकार तनावमुक्त बनाता है, उसी प्रकार भयमुक्त भी बनाता है। तनावमुक्ति और भयमुक्ति एक-दूसरे में सहायक बनती है । समयसार में कहा गया है कि जो आत्मा और अनात्मा को समझ लेता है, भेदविज्ञान को समझ लेता है और अपनी दृष्टि को नि:शंक (सन्देह व शंकारहित ) सम्यक् बना लेता है, वह सात