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अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016
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2. क्रोधी व्यक्ति के क्रोध उत्पन्न होने पर सामने वाले व्यक्ति को शांत
रहना चाहिए जब तक वह शांत नहीं हो जाता ।
3. क्रोध के आवेश में हमें जबाव नहीं देना चाहिए ।
4. कर्म के उदय का विचार करें कि हमारे कर्म के कारण ही हमें क्रोध कषाय उत्पन्न हुई है।
5. क्रोधी के क्रोध शांत होने पर क्षमा मागें ।
6. क्रोधी की भावना के अनुरूप सम्यक् प्रवर्तन करने का प्रयास करें।
7. क्रोध कषाय के कारण जिन्होंने दुःख भोगे ऐसे व्यक्तियों के जीवन वृत्त का विचार करें।
जैसे:- 1. तुकारी (स्त्री) को कोई तु नहीं कह सकता था। 2. द्वैपायन मुनि द्वारा क्रोध
8. क्रोध के आवेश में लिया गया निर्णय ठीक नहीं होता है।
9. क्रोध अन्धा होता है।
10. क्रोध हमेशा पर वस्तु पर होता है।
मानकषाय :
अभिमान के कारण दूसरे के प्रति नमने की वृत्ति न होना मान है। मान भी अनन्तानुबंधी अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्जवलन के भेद से चार प्रकार का है जो उत्तरोत्तर मन्द होता जाता है। इसकी उपमा, शैल, काष्ठ बौर बेंत से दी जाती है। इनका फल क्रमशः नरक, तियंच, मनुष्य और देवगति की प्राप्ति है।
आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती गोम्मटसार जीवकाण्ड में गाथा-285 में इसी तरह के भेद बताते हैं कि मान भी चार प्रकार का होता है। पत्थर के समान, हड्डी के समान, काठ के समान तथा बेंत के समान । ये चार प्रकार के मान भी क्रम से नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देवगति में उत्पन्न होते हैं।
मान कषाय के कारण जीव अनेक प्रकार के विचार करता है आचार्य कल्प पं. टोडरमल जी ने मोक्षमार्ग प्रकाशक के तीसरे अध्याय, पेज 53 पर चारित्रमोहनीय के प्रकरण में मान कषाय के कारण दु:खी होकर जीव क्या करता है जो कहते हैं।