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अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016 मल अभिलेख- ज्यासधर पतनी जसवाई धिवणी जा (ज्या) नी स्य.. कराविता जासधार पतनी जस म.....(ध गिधणी जा नी कई प) हिन्दी अनुवाद- ज्यासधर की पत्नी 'जसवाई' और........ ने इस प्रतिमा की स्थापना करवाई। इसमें भी कुल एवं वंश का अंकन नहीं किया गया है। १३.मूर्ति का नाम- नेमिनाथ की यक्षिणी अम्बिका की मूर्ति के आसन में अंकित मूल अभिलेख- 'देमु (भेड़) पत्नी ज्याविणी स्रावकिखि सुविधमुणित्यवाइ (पिणिजाइ) कशवित्छे (कशापित्ये) हिन्दी अनुवाद- 'देमु' की पत्नी ‘ज्याविणी' श्राविका ने सुविधि 'मुनि ज्यवाई प्रतिमा की स्थापना करवाई। इसमें भी काल एवं वंश के नाम का अंकन नहीं किया गया है। १४. मूर्ति का नाम- एक खण्डित प्रतिमा पर अंकित है यह अभिलेख मूल अभिलेख- (सुरा) आणं (नं) दपतनी........ (सहजा) 'सुतवी' हिन्दी अनुवाद- आनन्द की पत्नी सुतवी ने इस प्रतिमा की स्थापना करवाई। इसके अतिरिक्त इसमें कुछ भी उत्कीर्ण नहीं है।
इस प्रकार उत्खनन से चौदह अभिलेख प्राप्त हुए हैं जो जैन प्रतिमाओं के आसन में अंकित हैं। वीर-छबीली टीले के उत्खनन से प्राप्त अभिलेख नागरी लिपि, संस्कृत और अपभ्रंश भाषा में रचित हैं। मात्र 5 अभिलेखों में तिथि का अंकन है। मात्र एक अभिलेख में सरस्वती के आसन में स्थान का नाम, आचार्य शासक एवं अन्य सूचनाएँ ज्ञात होती हैं। अभिलेख एवं मूर्तियों से ज्ञात होता है कि जैन मन्दिर में सर्वाधिक मात्रा में 10 वीं 11वीं शताब्दी में प्रतिमाएं निर्मित हुई थीं। इससे यह स्थल जैनधर्म का महत्त्वपूर्ण केन्द्र रहा होगा। वर्तमान में एक समीपस्थ गाँव का नाम "जैनपुरा" भी है। इस प्रकार जैन पुरातत्त्व से बीर-छबीली टीले को एक नई पहचान प्राप्त हुई। सन्दर्भ सूची: 1. घोष, ए0, जैन कला एवं स्थापत्य, भाग-1 भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली, 1975 2. जैन, हीरालाल, भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, भोपाल, 1962 3. तिवारी, मारूतिनन्दन प्रसाद, जैन प्रतिमा विज्ञान, वाराणसी, 1981