Book Title: Anekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 241
________________ अनेकान्त 69/3, जुलाई-सितम्बर, 2016 अशोक - शिलालेख में निहित दर्शन ( गिरनार शिलालेख के सन्दर्भ में ) 49 डॉ. आनन्द कुमार जैन इतिहास में कुछेक प्रसंग ऐसे हैं जहाँ जनसंहार से सप्रस्फुटित पश्चाताप का स्रोत जीवनोत्थान का प्रबल कारण बना है। यद्यपि यह विरोधाभास सा लगता है किन्तु ऐसे बिरले उदाहरण हैं और जो भी हैं वे किसी क्षेत्र विशेष, जाति, समुदाय या देश की सीमा को लाँघ कर समूचे मानव जाति के अन्तस में अहम स्थान रखते हैं। ये उदाहरण या तो प्रागैतिहासिक हैं या संक्षिप्त रूप से इतिहास में निबद्ध हैं और हो सकता है कि अनेकों उदाहरण ऐसे होंगे जिनका अन्वेक्षण भी अभी तक न हुआ हो जैसे कि जैसे कि दो सौ वर्ष पूर्व तक भारतीय संस्कृति की अनेक बहुमूल्य निधियों का अन्वेषण पश्चिमी विद्वानों ने किया, जो आज भी समादृत है। यही सत्य पाली तथा प्राकृत भाषा के पुनरुत्थान का है जो कि भारतीय वाड्.मय के लिए पश्चिमी विद्वानों का प्राण-दायक अवदान है और विगत सौ-डेढ़ सौ वर्षों में पुरातात्त्विक क्षेत्रों की खुदाई मे भारतीय धरोहरों की खोज भी इसी का परिणाम है। इनमें कई ऐतिहासिक शिलालेख, अभिलेख प्राप्त हुए हैं और भारत-भूमि ऐसे ही साक्ष्यों से खचित है और इनमें भी अशोक के शिलालेख ऐतिहासिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं। इन शिलालेखों का भाषिक तथा पुरातात्त्विक दोनों पक्षों से महत्त्व है। ये समस्त शिलालेख अशोक ने हृदय परिवर्तन के पश्चात् अपने साम्राज्य में लगवाये । यद्यपि यह इस घटना से पूर्व अशोक ने असीमित क्षेत्रों पर विजय पताका फहराकर स्वयं में गौरवान्वित अनुभव किया होगा किन्तु क्षत-विक्षत पड़े, लहू से रंजित शवों तथा उनके समक्ष बिलखते बच्चों एवं विधवाओं को देखकर हृदय परिवर्तन का अनूठा घटनाक्रम ही अध्यात्म का गोमुख सिद्ध हुआ ।

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