Book Title: Anekant 2016 Book 69 Ank 01 to 03
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 244
________________ 52 अनेकान्त 69/3, जुलाई-सितम्बर, 2016 प्रथम शिलालेख जीव दया यह पशुयाग तथा माँस भक्षण निषेध के अर्थ में प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त अन्य शिलालेखों में अहिंसा, पश्चाताप, करुणा, स्वच्छ कूटनीति, पारिवारिक कर्तव्य, सामाजिक कर्तव्य, निर्लोभता, जातिगत सामञ्जस्य, शीलपालन जैसे विविध विषयों को इंगित किया है। गिरनार के प्रसिद्ध शिलालेख में सर्वप्रथम जीव दया का निर्देश है और अशोक शासित क्षेत्रवर्ती लोगों के लिए हर सम्भव स्थिति में इसके पालन का निर्देश था। जहाँ जीव-दया पालन दुष्कर था ऐसी परिस्थितियों का स्पष्ट उल्लेख करके शिलालेखों में उनका निषेध किया गया है। उदाहरण के लिए समाज अर्थात् जहाँ विलास तथा आमोद-प्रमोदपूर्ण उत्सव होता था और जिनमें गाना, बजाना, नृत्य, माँस, मदिरा आदि का प्रयोग उन्मुक्त रूप से होता था। इनका सम्राट अशोक ने निषेध किया था तथा सात्त्विक रूप से मनाने का संदेश दिया। इनको वर्जित करना अनिवार्य भी था क्योंकि इन कार्यक्रमों की ओट में जो प्राणियों पर अत्याचार हो रहा था वह अशोक के लिए असहनीय था। नीर-क्षीर विवेकी राजा की तरह अशोक ने मात्र कमियों पर ध्यान दिया है क्योंकि 'समाज' से अशोक को शिकायत नहीं थी अपितु उसमें होने वाली हिंसा का निषेध करना उद्देश्य था। इसी कारण से प्रथम अभिलेख की छटी सातवीं पंक्ति में हिंसा रहित समाज का समर्थन किया है।" यही न्यायोचित आदेश जैनदर्शन के सिद्धान्त स्याद्वाद को भी सूचित करता है। अर्थात् कथञ्चित् समाज उचित है यदि अहिंसायुक्त हो। इसी प्रकार कि एक किवदन्ती भगवान् बुद्ध के सम्बद्ध में बहुप्रचलित है कि जब उनसे पूछा गया कि शयन करना अच्छा या जागना अच्छा तो भगवान् बुद्ध बड़ा ही सुन्दर उत्तर देते हुए कहते हैं कि दुष्ट का सोना अच्छा है तथा सज्जन का जागना अच्छा है। यहाँ भी अपेक्षा की दृष्टि को अनुभव करें तो स्याद्वाद की ध्वनि स्पष्ट सुनाई देती है। जब प्रश्न रुग्ण मनुष्यों का उठा तो मनुष्यों के साथ-साथ जानवरों की भी सुरक्षा तथा स्वास्थ्य का ध्यान सम्राट् अशोक के शासन काल में मिलता है। ? मनुष्यों तथा पशुओं के लिए चिकित्सालय खुलवाना तथा

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