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अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016 के पाँच लड़के थे। इन पांचों लड़कों में यह राज्य बांटा गया। यहाँ पर जिस समय भगवान् पार्श्वनाथ तप में लीन थे तब उनके पूर्व जन्म के बैरी कमठ के जीव ने जो उस समय संवर नामक देव की पर्याय में था, भगवान के ऊपर घोर उपसर्ग किया गया, किन्तु भगवान जरा भी विचलित नहीं हुए। भगवान् की कुमारावस्था के समय उन्होंने वाराणसी में गंगातट पर मरणासन्न नाग को णमोकार मंत्र सुनाया था जिसके प्रभाव से समता पूर्वक मरणकर वे धरणेन्द्र पद्मावती नामक देव देवी हुए और उन्होंने उस भयानक उपसर्ग से रक्षा हेतु अपने नागफण का छत्र लगाकर अपनी कृतज्ञता प्रगट की तभी से इस स्थान का नाम अहिच्छत्र प्रसिद्ध हो गया।' इसी स्थान पर भगवान् को केवलज्ञान उत्पन्न हुआ और धर्मसभा रूप समवसरण की रचना हुई। दूसरे मतानुसार 'पंचाल' नाम इसलिए पड़ा कि यहाँ कृवि, तुर्वशु, काशिन, अजय और सोमक ये पांच जन समुदाय रहते थे। ऋग्वेद में कृवि प्रधान थे। ऋग्वेद में 'कृवि' शब्द तो आता है पर पंचाल नहीं, परन्तु यजुर्वेद, ब्राह्मण ग्रन्थों, आरण्यकों तथा उपनिषदों में देश तथा उसमें निवास करने वाले लोगों के लिए 'पंचाल' नाम पाया जाता है। रामनगर तथा उसके पास से प्राप्त कई अभिलेखों में अहिच्छत्र नाम आया है। इलाहाबाद जिले के पभोसा नामक स्थान की गुफा में भी 'अहिच्छत्र' नाम खुदा है। यह लेख शुंगकालीन है। राज्य संग्रहालय लखनऊ में एक अत्यन्त बैठी घिसी प्रतिमा की चरण-चौकी पर दो पंक्तियों का अभिलेख है। प्रथम पंक्ति के अंत में अहिच्छत्रा प्रारंभिक कुषाणयुगीन ब्राह्मी में उत्कीर्ण है। दूसरी अभिलिखित यक्ष प्रतिमा भी उल्लेखनीय है। प्रोफेसर के. डी. वाजपेयी द्वारा खोज इस पर अहिच्छत्रा में फारगुल विहार होने का उल्लेख है।'
जैन ग्रन्थों में अधिकतर 'अहिच्छत्र' नाम मिलता है। 'विविध तीर्थ कल्प' नामक जैन ग्रन्थों के अनुसार नगर का पुराना नाम ‘संख्यावती' था और वह कुरू जांगल प्रदेश की राजधानी थी। इस ग्रन्थ में उल्लेख है कि एकबार पार्श्वनाथ भगवान् यहाँ ठहरे हुए थे। कमठ नामक दानव ने उनके ऊपर वर्षा की झड़ी लगा दी। नागराज धरणेन्द्र ने सपत्नीक पार्श्वनाथ की अपने फणरूपी छत्र से रक्षा की। इस प्रकार अहि (सर्प)