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अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016
करना योग्य कहा है। 'अब्बुट्ठाणं गहणं उवासणं पोसणं च सक्कारं। अंजलिकरणं पणमं भणिदं इह गुणाधिगाणं हि॥' (प्रवच.गा.3/62)
__ तथा आगे कहते हैं जो आगम के अर्थ में निपुण हैं तथा संयम तप और ज्ञान से सहित हैं ऐसे मुनि ही निश्चय से अन्य मुनियों के द्वारा उठकर खड़े होने योग्य, सेवा करने योग्य तथा वन्दना करने योग्य हैं
'अब्भुट्ट्या समणा सुत्तत्थविसारदा उपासेया। संजमतवणाणड्ढा पणिवदणीया हि समणेहि।। (प्रवच.गा.3/63)
दर्शन पाहुड में यह भी कहा कि जो गुणी मनुष्यों के गुण का वर्णन करते हैं वे वन्दनीय हैं
दसणणाणचरित्ते तवविणये णिच्चकालं सुपसत्था। एदे दु वंदणीया जे गुणवादी गुणधराणं॥ (दसणपाहुड-23)
जो मुनि दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तपो विनय में सदा लीन रहते हैं तथा अन्य गुणी मनुष्यों के गुणों का वर्णन करते हैं वे वन्दनीय हैं, नमस्कार करने के योग्य हैं। आगे वे तपस्वियों को वन्दनीय कहते हैं
वंदामि तव समण्णा सीलं च गुणं च बंभचेरं च। सिद्धिगमणं च तेसिं सम्मत्तेण सुद्धभावेण॥ (दर्शनपाहुड-28)
मैं उन मुनियों को नमस्कार करता हूँ जो तप से सहित हैं। साथ ही उनके शील को, गुण को, ब्रह्मचर्य को और मुक्तिप्राप्ति को भी सम्यक्त्व तथा शुद्धभाव से वन्दना करता हूँ। अवन्दनीय :
आचार्य कुन्दकुन्द मोक्षपाहुड में मिथ्यादृष्टि जीव की मान्यता बतलाते हुए कहते हैं
सपरावेक्खं लिंगं राई देवं असंजयं वंदे। माणइ मिच्छादिट्ठी ण हु मण्णइ सुद्धसम्मत्तो॥ (मोक्षपाहुड-93)
स्व और पर की अपेक्षा से सहित लिङ्ग को तथा रागी और असंयत देव की वन्दना करता हूँ। ऐसा मिथ्यादृष्टि जीव मानता है, शुद्ध सम्यग्दृष्टि जीव नहीं।