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अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016 इस प्रसंग से यदि अर्थ निवेश का सम्बन्ध जोड़ा जाए तो ज्ञात होता है कि संक्षिप्त पूंजी निवेश से भी भविष्य में पूंजी को बढ़ाया जा सकता है। कुछ लोग ऐसा कहते हैं कि अनुकूल अवसर की प्रतीक्षा करो लेकिन 'मूकमाटी' के रचयिता अपने अनुभव से कहते हैं कि
किसी कार्य को सम्पन्न करते समय अनुकूलता की प्रतीक्षा करना
सही पुरुषार्थ नहीं है। कुटीर उद्योग से अर्थ प्राप्ति- 'मूकमाटी' में आचार्य श्री विद्यासागर कुम्भकार के द्वारा घट निर्माण के विषय में बताते हुए दो बातों की ओर ध्यान आकृष्ट करते हैं 1. शिल्पी से सरकार कोई 'कर' नहीं मांगती। अतः शिल्पी चोरी के दोष से मुक्त रहता है। 2. वह अर्थ का अपव्यय नहीं करता, व्यय भी नहीं करता (यह उस समय की बात है जब मिट्टी बिना मोल मिलती थी)। 'मूकमाटी' में इस भाव को इस रूप में व्यक्त किया गया है
वह एक कुशल शिल्पी है/उसका शिल्प/कण-कण में रूप में बिखरी माटी को/नाना रूप प्रदान करता है। सरकार उससे/कर नहीं मांगती/ क्योंकि/ इस शिल्प के कारण/चोरी के दोष से वह सदा मुक्त रहता है।
अर्थ का अपव्यय तो/बहुत दूर/अर्थ का व्यय भी यह शिल्प करता नहीं/बिना अर्थ/शिल्पी को यह अर्थवान बना देता है/युग के आदि से आज तक
इसने/अपनी संस्कृति को/विकृत नहीं बनाया। अर्थहीन की ओर अर्थ दृष्टि- आचार्य श्री विद्यासागर जी 'मूकमाटी' में माटी के माध्यम से कहलवाते हैं कि यह -
_अमीरों की नहीं/गरीबों की बात है
कोठी की नहीं/कुटिया की बात है इससे स्पष्ट हो रहा है कि 'मूकमाटी' के रचयिता की अर्थदृष्टि अर्थहीनों के आर्थिक समुन्नयन की ओर है। यह उचित भी है, क्योंकि कोई