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अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016 मतावलम्बियों का महत्त्वपूर्ण तीर्थ है। इनके अतिरिक्त मातृदेवियों की प्रतिमाएं, ईंटें, मनके एवं मृणपात्र भी अहिच्छत्र के लखनऊ संग्रहालय में सुरक्षित हैं। श्री जिनेश्वर दास संग्रह में भी है। इनमें गुप्तयुगीन धनुर्धारिणी विशेष उल्लेखनीय है। इस प्रकार अहिच्छत्र से ई.पू. 300 से लेकर 1100वीं सदी तक के पुरातात्त्विक कलावशेष उपलब्ध हुए हैं, जिसे डॉ. शैलेन्द्र कुमार रस्तोगी (पूर्व सहायक-निदेशक राज्य संग्रहालय) लखनऊ ने काफी परिश्रम से प्रदर्शित किया जो आज अहिच्छेत्र कला प्रेमियों के लिए धरोहर के रूप में सुरक्षित है। संदर्भ : 1. पंचाल के प्राचीन सिक्के- डॉ. संतोष कुमार वाजपेयी, पंचाल खण्ड-7, 1994 2. शतपथ ब्राह्मण 13,5,4,7 3. इन पांचों के नाम पुराणों में विभिन्न रूप में मिलते हैं भागवत 6, 21, विष्णुपुराण 16.4 4. पन्नालाल जैन, उ0प्र0 में जैन तीर्थ एवं स्थल। 5. मैकडानल तथा कीथ वैदिक इंडेक्स जिल्द 1, पृ. 469 6. शतपथब्राह्मण (13,1,4,7) में आया है कि पंचाल लोगों की प्रारम्भिक संज्ञा 'कृषि' थी। 7. डॉ. विनीत पाल, उत्तर भारत का ऐतिहासिक नगर अहिच्छत्रा-प्राचीन तीर्थ जीर्णोद्धार 2002 नवम्बर 8. के. डी. वाजपेयी ए न्यू इंस्क्राइब्ड यक्ष इमेज फ्राम अहिच्छत्रा- जर्नल आफ यू.पी. हिस्टॉरिकल सोसायटी 1950, पृ. 112 9. जिनप्रभ सूरि रचित विविध तीर्थकल्प (सिन्धी जैन ग्रन्थमाला) पृ. 14 10. पंचाल के प्राचीन सिक्के, डॉ. संतोष कुमार वाजपेयी, प्रवक्ता सागर वि.विद्यालय (खण्ड-7) 1994 11. सरकार दिनेशचन्द्र सिलेक्ट इंन्स क्रिप्सन वियरिंग आन इंडियन हिस्ट्री एण्ड सिविलिजेशन 1965, पृ. 97 12. राज्य संग्रहालय लखनऊ में इस प्रकार के पर्याप्त सिक्के हैं। 13. प्रतिहार सम्राट नागभट्ट द्वितीय का ताम्रपत्र लेख- डॉ. बुद्धरश्मि मणि एवं इन्दुधर द्विवेदी पंचाल खण्ड-7, 1994 पृष्ठ-23 14. जे. 684, जे 685, जे 686 लखनऊ संग्रह 15. 46-13 राज्य संग्रहालय लखनऊ (डा. शैलेन्द्र कुमार रस्तोगी)
- संग्रहाध्यक्ष (से.नि.) केन्द्रीय संग्रहालीय गूजरीमहल, 64ए, कृष्ण विहार, न्यू दर्पण कालोनी, हरिदर्शन पीठ मंदिर के पास
पोस्ट-रामकृष्ण पुरी, ठाटीपुर, ग्वालियर-474011 (म.प्र.)