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अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016 फण बन जाने से 'संख्यावती' के स्थान पर अहिच्छत्रा या अहिच्छत्र नाम प्रसिद्ध हुआ।
अहिच्छत्र का पार्श्वनाथ से सम्बन्ध मात्र साहित्य से न होकर एक अभिलेखीय साक्ष्य से भी प्रमाणित होता है। कटारी खेड़ा नामक टीले से प्राप्त एक स्तम्भ पर उत्कीर्ण है यह लेख। इस मंदिर का निर्माण गुप्तकाल में हुआ। लेख के प्राप्ति स्थान के पास पार्श्वनाथ जी का आधुनिक मंदिर है। कटारी खेड़ा से अनेक प्राचीन जैन मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। बौद्ध साहित्य में भी अहिच्छत्र के नामकरण के सम्बन्ध में जैन कथा से मिलती जुलती पायी जाती है। रामायण, अर्थशास्त्र, बौद्ध तथा जैन साहित्य पुराण ग्रन्थों, स्वप्नवासवदत्ता, हर्षचरित, कादम्बरी, नैषधचरित आदि में 'पंचाल' के विवरण मिलते हैं। उनसे यह पता चलता है कि पहले वहाँ राजतंत्रीय शासन व्यवस्था थी, बाद में गणतंत्र स्थापित हुआ। चीन यात्री फाह्यान और हवेनसांग के यात्रा विवरणों में भी पंचाल के अहिच्छत्रा और कन्नौज का उल्लेख हुआ है।
नंद और मौर्य शासकों के समय पंचाल का क्षेत्र उनके साम्राज्य का एक अभिन्न अंग रहा। मौर्यों के पश्चात ई0पू0 दूसरी शती से लगभग 350 ई0 तक पंचाल के भूभाग पर विभिन्न शासकों ने स्वतंत्र रूप से राज्य किया। इसकी पुष्टि उन शासकों के सिक्कों से होती है। वहाँ के एक आरम्भिक राजा बंगपाल का नाम पभौसा के लेख में मिलता है। वह लेख बंगपाल के पौत्र असाढ सेन का है। यहाँ से प्राप्त सिक्कों से ज्ञात होता है कि ई.पू. 200 से लेकर लगभग 50 ई.पू. तक अहिच्छत्र पर गुप्त, पाल तथा सेन नामवाले राजाओं ने राज्य किया। यहाँ पर मित्रवंश के सिक्के भी प्राप्त हुए हैं। इन सिक्कों पर सामने की ओर पंचाल जनपद के तीन चिन्ह और नीचे राज्य का नाम ब्राह्मी में पीछे आसन पर देवी या देवता की मूर्ति तथा कटघरे में वृक्ष मिलता है। ये सभी सिक्के गोलाकार हैं। मित्रवंशी राजाओं के सिक्के अहिच्छत्र के अतिरिक्त आँवला, बदायूँ तथा रूहेलखण्ड के कई स्थानों में मिलते हैं।12
उत्तर भारत में कुषाणों के काल में विविध व्यवसाय और वाणिज्य के केन्द्र बने। राजगृह से आने वाले व्यापारिक मार्ग पर काशी, कौशाम्बी,