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अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016
अर्थात् कुदेव, कुगुरु व कुशास्त्र के तथा इन तीनों के उपासकों के घरों में आना-जाना, इनको आगमकारों ने षडनायतन; ऐसा नाम दिया है। प्रभाचन्द्र आचार्य ऐसा कहते हैं कि- मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान, मिथ्याचारित्र; ये तीन तथा इन तीनों के धारक अर्थात् मिथ्यादृष्टि, मिथ्याज्ञानी व मिथ्या आचारवान् पुरुष; यह छह अनायतन हैं। अथवा 1. असर्वज्ञ, 2. असर्वज्ञदेव का मन्दिर, 3. असर्वज्ञ ज्ञान, 4. असर्वज्ञ ज्ञान का धारक पुरुष, 5. असर्वज्ञज्ञान के अनुकूल आचार, 6. उस आचार के धारक पुरुष; यह छह अनायतन हैं। 10
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'छहढाला' में पं. दौलतराम जी ने लिखा है किकुगुरु कुदेव कुवृष सेवक की, नहिं प्रशंस उचरे हैं। जिन मुनि जन श्रुत बिन, कुगुरादिक तिन्हें न नमन करे हैं । ११
अर्थात् खोटे गुरु, खोटे देव और खोटे धर्म तथा इनके सेवकों की प्रशंसा नहीं करना चाहिये। जिनेन्द्र भगवान दिगम्बर मुनि और जिनवाणी के अतिरिक्त जो कुगुरु आदि हैं; उन्हें कभी नमस्कार नहीं करना चाहिए। छह अनायतन का स्वरूप
1. कुगुरु अनायतन- रागी, द्वेषी, मिथ्यावेषी कुगुरुओं को गुरु मानना; यह कुगुरु अनायतन है।
2. कुदेव अनायतन- अठारह दोषों से युक्त, रागी, द्वेषी कुदेवों को देव मानना; कुदेव अनायतन है।
3. कुवृष अनायतन- हिंसा युक्त खोटे धर्म में धर्म मानना कुवृष अर्थात् कुधर्म अनायतन है।
4. कुगुरु सेवक अनायतन- कुगुरुओं की सेवा करने वालों की प्रशंसा करना कुगुरु सेवक अनायतन है।
5. कुदेव सेवक अनायतन- कुदेव सेवकों की सेवा करने वालों की प्रशंसा करना कुदेव सेवक अनायतन है।
6. कुधर्म सेवक अनायतन- कुधर्म सेवकों की सेवा करने वालों की प्रशंसा करना कुधर्म सेवक अनायतन है।
अभिधान-राजेन्द्रकोश में यह गाथा उद्धृत की गयी है -