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अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016 वाले दीक्षित, अध्वर्यु, उद्गाता, होता, अथर्ववेद के ज्ञाता, व्यास, स्मार्त तथा जैनाभास आदि साधु न सामने जाने के योग्य हैं, न दर्शन करने के योग्य हैं और न अभिवादन, नमस्कार करने योग्य हैं
प्रश्न- जैनाभास कौन है ? उत्तर- गोपुच्छिकः श्वेत वासो द्राविडो यापनीयकः।
निष्पिच्छश्चेति पंचैते जैनाभासाः प्रकीर्तिताः। अर्थात् गोपुच्छिक, शेतवासस्, द्राविड, यापनीयक और निष्पच्छये पाँच जैनाभास कहे गये हैं।
___ यद्यपि ये मयूर-पिच्छ के धारक हैं तो भी संशय मिथ्यादृष्टि होने के कारण नमस्कार करने के योग्य नहीं हैं, क्योंकि संशय मिथ्यादृष्टि होने के कारण मिथ्यादृष्टि ही माने जाते हैं।'
आयतन स्थान को कहते हैं। जो सद्गुणों का स्थान हैं वही जिनागम में आयतन नाम से प्रसिद्ध है। परम वैराग्य से युक्त सद्गुरुओं के सिवाय नाना वेशों को धारण करने वाले पाखण्डी साधु आयतन नहीं हैं, वे नमस्कार के योग्य नहीं हैं। द्रव्यसंग्रह टीका में अनायतन का स्वरूप बताते हुए कहा है कि- अथानायतनषट्कं कथयति। मिथ्यादेवो, मिथ्योदेवाराधको, मिथ्यातपो, मिथ्यातपस्वी, मिथ्यागमो, मिथ्यागमधराः पुरुषाश्चेत्युक्तलक्षणमनायतनषट्क। अर्थात् अब छह अनायतनों का कथन करते हैं- मिथ्यादेव, मिथ्यादेवों के सेवक, मिथ्यातप, मिथ्यातपस्वी, मिथ्याशास्त्र और मिथ्याशास्त्रों के धारक; इस प्रकार के छह अनायतन सरागसम्यग्दृष्टियों को त्याग करने चाहिए। चारित्तपाहुड गाथा 6 की टीका में श्री श्रुतसागर सूरि षट् अनायतन कौन-कौन हैं; इस विषय में कहते हैं
कि
कुदेवगुरुशास्त्राणां तद्भक्तानां गृहे गतिः।
षडायतनमित्येवं वदन्ति विदितागमाः॥ प्रभाचन्द्रस्त्वेव वदति- मिथ्यादर्शनज्ञानचारित्राणि त्रीणि त्रयश्च तद्वन्तः पुरुषाः षडनायतनानि। अथवा असर्वज्ञः 1 असर्वज्ञायतनं, 2 असर्वज्ञज्ञानं, 3 असर्वज्ञज्ञानसमवेतपुरुषः, 4 असर्वज्ञानुष्ठानं, 5 असर्वज्ञानुष्ठानसमवेतपुरुष श्चेति।