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अनेकान्त 69/2, अप्रैल-जून, 2016
सरस्वती मूर्ति शिल्प :
फतेहपुर सीकरी के उत्खनन स्थल 'वीर- छबीली' टीले के उत्खनित जैन पुरातत्त्व में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पुरातात्त्विक मूर्ति जैन श्रुत देवी सरस्वती की है। यह सौन्दर्य में अद्वितीय है। इस प्रतिमा का एक अन्य नाम 'वीर- छबीली' भी है। हाथों को छोड़कर सभी अंग लगभग सुरक्षित हैं। दोनों एड़ी का भाग भंगित है, किन्तु प्राप्य है। यह त्रिभंग मुद्रा की प्रतिमा स्तम्भ परिकर के भीतर आसन पर खड़ी है।
सरस्वती के मस्तक के दोनों ओर परिकर में दो ध्यानी तीर्थंकर स्थित हैं। यह सरस्वती की प्रतिमा ऊपर से नीचे तक आभूषण युक्त है। देवी चतुर्भुज धारिणी आभामण्डल युक्त है, किन्तु दो हस्त खण्डित हैं। यह प्रतिमा बलुआ पत्थर द्वारा निर्मित है। इसके ऊपर श्वेत वर्ण का ओप (Point) प्रलेपित है। अभिलेखानुसार इसकी स्थापना सन् 1010 ई0 में 'संचामर' और ' भल्लिक्य' गोत्र वाले सेठों द्वारा की गई, जिसमें 'अहिल्या ' भी नाम है। सम्भवतः आहिल शिल्पी था, जिसने प्रतिमा को गढ़ा था। इस प्रतिमा का कला और पुरातत्त्व के क्षेत्र में अद्वितीय स्थान है। अन्य मूर्ति-शिल्प :
खण्डित सिर :- वीर- छबीली टीले से तीर्थंकर के तीन खण्डित मस्तक भी प्राप्त हुए हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है
(क) इस मस्तक का अग्रभाग खण्डित है, जिससे कुछ भी स्पष्ट नहीं होता है। ग्रीवा में तीन वलय स्पष्ट अंकित हैं।
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(ख) यह मस्तक भी बलुआ पत्थर द्वारा निर्मित है। मुख मण्डल गोल है। (ग) इस तीर्थंकर मस्तक के ऊपर सात सर्पण हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा है। परिकर की दीवार में दो जिन अंकित हैं।
(घ) वास्तुखण्ड में अंकित तीर्थंकर : यह वास्तु खण्ड पिरामिडीय :आकार अथवा मन्दिर के आकार का है। देवकोष्ठ के भीतर अशोक वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ मुद्रा में तीर्थकर अवस्थित हैं। ध्यानस्थ मुद्रा के दोनों ओर दो जिन कोयोत्सर्ग मुद्रा में उत्कीर्ण हैं। आसन में अभिलेख अंकित है।