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अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016 आचार्य कल्प टोडरमल जी ने मोक्षमार्ग प्रकाशक के पेज 53 पर क्रोध कषाय के उदय होने के बारे में कहा है कि1. क्रोधी व्यक्ति हृदय को घात करने वाले गाली आदि रूप वचनों को बोलता है। 2. अपने अंगों से तथा शस्त्र पाषाणादि से घात करता है। 3. अनेक कष्ट सहकर तथा धनादि खर्च करके व मरणादि द्वारा अपना बुरा करके अन्य का बुरा करने का विचार करता है। 4. अपने द्वारा बुरा न होने पर अन्य से बुरा करवाता है। 5. यदि किसी का कुछ नहीं कर पाये तो स्वयं का भी घात कर लेता है।
इस प्रकार इन कषायों के द्वारा यदि जीव मरण को प्राप्त होता है तो नियम से संक्लेश परिणाम सहित होने से नरक की प्राप्ति करता है। ऐसा ही कथन (छहढाला की प्रथम ढाल के पद-9) में वर्णित है यहां तक कि हिन्दी के प्रसिद्ध विद्वान् रामचन्द्र शुक्ल ने अपने "क्रोध" नामक निबंध में कहा है कि क्रोध एक शान्ति भंग करने वाला मनोविकार है अतः क्रोध नामक कषाय के अभाव पूर्वक ही मानवीय मूल्य प्रकट होता
है।
गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा-293 में कृष्ण-नील लेश्याओं के द्वारा होने वाले आयु के बंधन से नरक आयु का फल प्राप्त होता है। प्रथम दो लेश्याओं वाले जीव अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ आदि कषायों से सहित होते हैं। वही तत्त्वार्थ सूत्र में आचार्य उमास्वामी चारित्र मोहनीय के स्वरूप का वर्णन करते हैं कि
___ 'कषायोदयात्तीव्रपरिणाम चारित्रमोहस्य'॥१४॥
कषाय के उदय से होने वाला आत्मा का तीव्र कलुषित परिणाम होने से चारित्र मोहनीय कर्म के आश्रव का कारण है, यही आस्रव नरकायु का कारण है। 'सूत्र-15' इस प्रकार क्रोध के अभाव पूर्वक क्षमा धर्म प्रकट होता है, क्षमावान व्यक्ति के ही संयम, त्याग, धर्म आदि गुण प्रकट होते हैं। जिससे क्रोध कषाय का अभाव मानवीय मूल्यों के आधार से होता है। 1. हमें अपने आगामी परिणाम व उसके फल का विचार करना चाहिए।