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अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016
(२) प्राचीन जैन महाकवि लेखक पं. परमानन्द शास्त्री, सम्पादक-पं. निहालचंद जैन, निदेशक वीर सेवा मंदिर, प्रकाशक वीर सेवा मंदिर, २१.दरियागंज नई दिल्ली-२ फोन ०११-२३२५०५२२, प्रथमावृत्ति : दिसम्बर, २०१५, प्रतियाँ १००, मूल्य : १००रुपये, पृष्ठ-१२६ ।
प्रस्तुत कृति में ऐसे 12 प्राचीन महाकवियों की साहित्यिक साधना का विवरण है जो हिन्दी जगत के युगीन सशक्त हस्ताक्षर रहे हैं। वीर सेवा मंदिर संस्थान का उद्देश्य लुप्तप्राय जैन साहित्य की खोज एवं अनुसन्धान रहा है। इसी श्रृंखला के अंतर्गत 'अनेकान्त' शोध पत्रिका की पुरानी फाइलों में से श्री पं. परमानंद शास्त्री जी द्वारा लिखित प्राचीन जैन कवियों के जीवन परिचय एवं उनकी साहित्यिक साधना का विवरण प्राप्त कर पं. निहालचंद जैन ने इसका योग्य संपादन किया जो प्रबुद्ध आध्यात्म प्रेमियों एवं शोधार्थियों के लिए एक मार्गदर्शक के भांति यह कृति सिद्ध होगी। पुस्तक का प्रकाशन निर्दोष एवं अभिराम है।
(३) काव्यकला सौन्दर्य ( भाषा और वस्तु) आचार्य तारण तरण विरचित चौदह ग्रन्थों की काव्यकला का विवरण
__ लेखक-मनमोहन चन्द्र, प्रकाशक-आलेख प्रकाशन, बी-८, नवीन शाहदरा दिल्ली-३२, संस्करण-प्रथम २०१५, सर्वाधिकारः लेखकाधीन, पृष्ठ-१६०, टाइप सेटिंग एवं मुद्रण-रचना इंटरप्राईजेज दिल्ली-३२
यह पुस्तक केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय (मानव संसाधन विकास मंत्रालय) द्वारा प्राप्त वित्तीय सहायता से प्रकाशित हुई है।
यह पुस्तक "रस, अलंकार, छंद और साहित्य सौंदर्य" एक ऐसी मंजूषा है जिसमें 16वीं शताब्दी के महान तत्त्वचिंतक दि. जैन सन्त श्रीमद् जिन तारण तरण मण्डलाचार्य रचित 14 ग्रन्थों की काव्यकला पर केन्द्रित है। प्रस्तुत पुस्तक 6 अध्यायों में समाहित है, जो क्रमश: भाषा, परिचय, शैली, विषयवस्तु, शब्द संयोजन एवं काव्यकला में वर्गीकृत है। पुस्तक पठनीय है तथा मुद्रण निर्दोष एवं सुन्दर है।
समीक्षाकार : पं. निहालचंद जैन, निदेशक