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अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016 प्राकृत एवं अपभ्रंश के क्षेत्र में विभिन्न विश्वविद्यालयों में शोध -
प्राकृत और अपभ्रंश शोध-उपाधियों तथा पीएच.-डी., डी.-लिट्, विद्यावाचस्पति विद्यावारिधि, डी.-फिल, लघु शोधप्रबंध (एम.ए. एवं एम.फिल के डिजर्टेशन के रूप में) आदि उपाधियों हेतु अनेक शोध-प्रबन्ध विभिन्न विश्वविद्यालयों में लिखे गये पर पहले उनकी कोई प्रामाणिक सूची प्रकाशित नहीं हुई थी। भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली ने प्राच्य विद्या सम्मेलन वाराणसी के अवसर पर एक जैन संगोष्ठी का आयोजन 1968 में किया था और ज्ञानपीठ पत्रिका का अक्टूबर 1968 का अंक, संगोष्ठी अंक के रूप में निकला था; जिसमें शोधकार्य तथा शोधरत छात्रों की सूची प्रकाशकों विद्वानों आदि परिचय दिया गया था। पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान वाराणसी (उ.प्र.) से डॉ. सागरमल जैन एवं डॉ. अरुण प्रताप सिंह के सम्पादकत्व में सन् 1983 में एक सूची Doctoral Dissertations in Jain and Buddhist Studies के नाम प्रकाशित हई थी। इसी प्रकार डॉ. गोकुलचन्द जैन, वाराणसी ने एक सूची संकाय पत्रिका सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के श्रमणविद्या अंक 1983 ई. में प्रकाशित की। 1988 में डॉ. कपूरचन्द जैन ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली के आर्थिक सहयोग से Survey of Prakrit & Jainological Reasearch प्रोजेक्ट पूर्ण किया। जो रिपोर्ट आयोग को भेजी गई और 1988 में ही इस रिपोर्ट का प्रकाशन श्री कैलाशचन्द जैन स्मृति न्यास से प्राकृत एवं जैनविद्या : शोध संदर्भ नाम से हुआ। उसमें 452 शोध-प्रबन्धों की सूची थी। मई 1991 में प्राकृत एवं जैनविद्या शोध-संदर्भो का दूसरा संस्करण उक्त न्यास ने प्रकाशित किया जिसमें लगभग 600 देशी तथा 45 विदेशी छात्र-प्रबन्धों का परिचय था; साथ ही जैन विद्याओं के शोध निर्देशकों का संक्षिप्त परिचय दिया गया था। इसमें 95 शोध योग्य विषयों की सूची इसमें दी गई है। इसके बाद लगभग 145
और शोध-प्रबन्धों की जानकारी सन 1993 में शोध-संदर्भ का परिशिष्ट निकाल कर दी गई। वर्तमान में लगभग 80 विश्वविद्यालयों से प्राकृत, अपभ्रंश एवं जैन विद्याओं में शोध-उपाधियाँ दी गई हैं। 20 से अधिक