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अनेकान्त 69/1, जनवरी-मार्च, 2016
उपयोगिता की आवश्यकता है। संदर्भ : 1. जैन, गोकुल प्रसाद-विदेशों में जैन धर्म, श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन (धर्म संरक्षिणी) महासभा, लखनऊ, प्रमि संस्करण, 2000 2. जैन, प्रेमसुमन-प्राकृत एवं जैन धर्म का अध्ययन (20वीं सदी के अंतिम दशक में), कुन्दकुन्द भारती प्राकृत संस्थान, नई दिल्ली, 2000 3. जैन, प्रेमसुमन-प्राकृत रत्नाकर (प्रमुख प्राकृत ग्रंथ, ग्रंथकार एवं संबन्धित विषय), राष्ट्रीय प्राकृत अध्ययन एवं संशोधन संस्थान, श्रवणबेलगोला, कर्नाटक, प्रथम संस्करण 2012 4. जैन, देवेन्द्रकुमार शास्त्री-अपभ्रंश भाषा साहित्य की शोध प्रवृत्तियां, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, दिल्ली, परिवर्द्धित संस्करण, 1996 5. जैन, जगदीशचन्द्र- प्राकृत साहित्य का इतिहास, चौखम्भा संस्कृत प्रतिष्ठान, दिल्ली, द्वितीय संस्करण, 1984 6. पाण्डेय, हरिशंकर-प्राकृत साहित्य एवं आधुनिक शोध प्रविधियाँ (शोध आलेख-प्राकृत भाषा और व्याकरण के विविध आयाम, संपा.- राधावल्लभ त्रिपाठी पुस्तक में) राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान, दिल्ली, 2012, पृ. 46-50 7. जैन, कपूरचन्द-प्राकृत एवं जैन विद्या शोध-संदर्भ, श्री कैलाश चन्द्र जैन मेमोरियल ट्रस्ट, खतौली, तृतीय परिवर्धित संस्करण, 2004 8. Banerjee, Dilip Kumar, The Contributions of French and German Scholars to Jaina Studies, Acharya Bhikshu Commemoration Volume, ed. by Kanhaiyalal Dugar, Section-II, Jain Swetamber Terapanthi Mahasabha, Calcutta, 1961.
- सहायक आचार्य,
संस्कृत एवं प्राकृत विभाग, जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूं (राजस्थान)