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विश्व - मंगल
प्राणी का अहित भी हमारे
जब मनुष्य का स्वार्थं विस्तृत हो जाता है, जब क्षुद्र ममत्व, विराट् ममत्व का रूप धारण कर लेता है, जब सर्वत्र 'स्व' ही दीखता है, 'पर' कोई नहीं दीखता, जब सबके भले में ही अपना भला नजर आता है, जब एक क्षुद्र लिए असह्य हो जाता है । तब समझना चाहिए कि मनुष्य के अन्दर में भगवत् - शक्ति का प्रादुर्भाव हो रहा है, और वह अन्धकार से प्रकाश में आ रहा है । मृत्यु से अमरत्व में आ रहा है । इस दशा में, मनुष्य की चेतना, मन, वागी, कर्म के रूप में जो कुछ भी सोचेगी, बोलेगी, करेगी, वह अखिल विश्व के लिए मंगलमय होगा ।
भूमा त्वेव
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सच्ची विजय
अनन्त काल से संसार के योद्धाओं की तलवारें विजय के पथ पर खनखना रही हैं । परन्तु विजय कहाँ ? वह आज भी स्वप्न है । विजय किस पर ? शरीर पर, या आत्मा पर ? विजय किससे ? तलवार के जोर से या प्रेम के बल पर ? जिस विजय और वीरता की
अमर - वाणी
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