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प्रति स्नेह और करुणा की वर्षा करता है, तो अमृत बन जाता है । "जगत् का दुःख ही अपना दुःख और जगत् का सुख ही अपना सुख"—यह है मैं और मेरा का विराट और विश्व-मंगल रूप, जो क्षणभंगुर संसार में भी मनुष्य को अजर-अमर बना देता है।
मैं और हम
मैं नरक की राह है, तो हम स्वर्ग की राह है। मनुष्य के अन्तर्मन में 'मैं' का अंश जितना कम होगा और 'हम' का अंश बढ़ेगा, उतना ही वह समाज के नारकीय वातावरण को स्वर्गीय बना सकेगा । जहाँ 'मैं' है, वहाँ अहंकार है, दम्भ है, कायरता है, ईर्ष्या है, लोभ है, तृष्णा है और अशान्ति है। जहाँ 'हम' है, वहाँ नम्रता है, सरलता है, प्रेम है, संगठन है, समता है, उदारता है, त्याग और वैराग्य है। 'मैं' क्षुद्र तथा संकुचित है, 'हम' विराट तथा असीम है।
बूद नहीं, सागर बनिए
जल की नन्हीं बूंद के लिए सब ओर संकट ही संकट है, आपत्ति ही आपत्ति है । उसे मिट्टी का कण सोखने को उभरता है, हवा का झोंका उड़ाने को फिरता है, सूरज की तपती किरण जलाने को उतरती है, पक्षी की प्यासी चोंच पीने को अकुलाती है। किं बहुना, जिधर देखो उधर ही मौत बरसती है। यदि बूंद को अपना अस्तित्व बचाना है, तो उसे अल्प से भूमा बनना होगा, क्षुद्र से विराट् होना होगा, महासमुद्र बन जाना होगा। समुद्र हो जाने के बाद कोई भय नहीं, आतंक नहीं। आँधी और तूफान आएँ, लाखों पशु और पक्षी आएँ, जेठ का सूरज आग बरसाए और कड़-कड़ाती बिजलियाँ मौत उगलें, परन्तु समुद्र को इन सब उपद्रवों का क्या डर है ? वह भूमा
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अमर • वाणी
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