________________
जैनत्व
जैन - धर्म और त्याग
जैन-धर्म का त्याग वासनाओं का त्याग है । जैन - धर्म त्याग के लिए अग्नि में जिन्दा जल जाने को नहीं कहता, गंगा या यमुना में डूब मरने को नहीं कहता, पहाड़ की ऊँची चोटियों से कूद जाने या बर्फ में गलकर मर जाने को भी नहीं कहता। भूख, प्यास, शर्दी, गरमी सह लेना भी कोई त्याग नहीं है। यह त्याग तो अनेक अपराधी जेलखाने का कैदी बनकर भी कर लेते हैं। परन्तु अपने-आप को कामनाओं के जाल से मुक्त कर लेना ही सच्चा त्याग है । त्यागी के लिए जीवन या मरण महत्त्वपूर्ण नहीं है, महत्त्वपूर्ण है, कामनारहित हो जाना !
जैन - संस्कृति और मानवता जैन - संस्कृति मानव - संस्कृति है। मानवता के विकास की चरम सीमा को सर्वतोभावेन स्पर्श करना ही जैन - संस्कृति का अमर लक्ष्य है। यही कारण है कि जैन - साहित्य का प्रत्येक शब्द मानव - जीवन की पवित्रता एवं सर्वश्रेष्ठता के प्रशस्त राग से अलंकृत एवं झंकृत है।
जैनत्व और जातिवाद
जैनत्व किसी एक व्यक्ति, जाति या संप्रदाय की सम्पत्ति नहीं
जैनत्व :
११
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org