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चरित्र - विकास के मूल तत्त्व
उपदेश और आचरण
मैं भूमण्डल पर के सभी धर्म - गुरुओं एवं धर्म - प्रचारकों से एक प्रार्थना करना चाहता हूँ कि वे जहाँ कहीं धर्म - प्रचार करने जाएँ, अपने - अपने धर्म शास्त्रों के साथ अपने सुन्दर आचरणों की पुस्तकें भी साथ लेते जाएँ। कागज की पोथियों की अपेक्षा आचरण की पोथियाँ अधिक प्रभावशालिनी होती हैं।
इच्छाओं के दास नहीं, स्वामी बनो मनुष्य ! तू अपनी ही इच्छाओं के हाथ का खिलौना बन रहा है। तेरा गौरव इच्छाओं द्वारा शासित होने में नहीं, अपितु अपने को उनका शासक बनाने में है।
राम और रावण राम और रावण में क्या अन्तर है ? एक इच्छाओं का स्वामी है और दूसरा उनका दास है, एक जीवन की मर्यादाओं में रह कर मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाता है, तो दूसरा जीवन की मर्यादा को ध्वस्त कर राक्षस कहलाता है।
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अमर वाणी
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