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धर्म की मिश्री को भी पुस्तकों की मुट्ठी में बंद न किए फिरें । उसे आचरण की जिह्वा पर चखिए, फिर देखिए, कितनी शान्ति और मधुरता प्राप्त होती है !
ज्ञान और किया
ज्ञान अंक है, तो क्रिया-काण्ड उसके आगे लगने वाला बिन्दु है । अंक के बिना शून्य का क्या मूल्य होता है, गणित शास्त्र में ? कुछ नहीं ! पहले धन या तिजोरी ? ज्ञान मूल धन है, तो क्रियाकाण्ड की साधना तिजोरी है । पहले अहिंसा और सत्य आदि का ज्ञान होता है और वही बाद में अहिंसा और सत्य के आचरण-स्वरूप क्रियाकाण्ड में उतरता है । ज्ञान का बीज क्रियाकाण्ड में विराट् वृक्ष हो जाता है । परन्तु पहले वीज का अस्तित्व तो चाहिए ? आज के जड़ क्रिया-काण्डियों को बड़ी ईमानदारी के साथ ज्ञान का मूल्य आँकना है ।
विवेक और शास्त्र
यदि आप आँख बन्द कर लें और उस पर दस हजार मील दूर तक देखने वाली दूरबीन लगा लें, तो क्या दिखाई देगा, कितना दीखेगा ? यही बात विवेक की आँख और शास्त्र की दूरबीन के सम्बन्ध में है | विवेक - ज्ञान के बिना शास्त्र बेचारा क्या कर सकता है ?
ज्ञानहीन क्रिया
ज्ञान के बिना जो भी प्रतिलेखन, प्रतिक्रमण, जप, तप, अहिंसा आदि की साधना है, वह सब आज्ञान क्रिया है । अज्ञान क्रिया
अमर - वाणी
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