Book Title: Amar Vani
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 182
________________ मनुष्य को भी ऐसा जीवन बनाना है। यह जीवन, एक खिलाड़ी का जीवन है ! पासा फेंक दिया और बस, अब दाँव का इन्तजार है कि वह अनुकूल पड़ता है या प्रतिकूल ? मनुष्य प्रयत्न करे, पुरुषार्थ करे और फिर परिणाम की प्रतीक्षा करे ! सफल हो तो ठीक । यदि असफल हो, तो फिर प्रयत्न करे, पुरुषार्थ करे ! मनुष्य का अधिकार प्रयत्न करने का है, सदैव अपने मनोऽनुकूल फल पाने में नहीं ! बच्चों के हाथ में पत्थर का फेंकना है, फल के लग जाना नहीं। अमर आकांक्षा मेरे जीवन की यह अमर आकांक्षा है कि मैं अगरबत्ती की भाँति जन-हित के लिए तिल-तिल जल कर समाप्त हो जाऊँ और आस-पास के जन-समुदाय को सेवा की सुगन्ध से महका हूँ! विरोध में भी एकता देखो दूर काले बादलों में, बिजली किस प्रकार इधर - उधर रह-रह कर झम - झमा रही है ? जल में भी अनल ! पानी में भी आग ! है न आश्चर्य की बात ? परस्पर विरोधी द्वन्द्वों में भी समन्वय का यह सुन्दर सन्देश प्रकृति की मूल देन है, यदि कोई भाग्यशाली समझ सके तो। गाय का उपकार गाय भूसा खाती है और देती है दूध ! मनुष्य मिष्ठान्न खाता है और देता क्या है ?.."मल । गाय भी गोबर के रूप में मल देती है, पर उससे घर के आंगन पुतते हैं, चौके लिपते हैं। सूखा गोबर जल कर रोटी पकाता है, राख बन कर मनुष्य द्वारा झूठे किए गए पात्रों को माँज कर शुद्ध, पवित्र बनाता है। और, मनुष्य का मल इनसे भी सीखिए !: १५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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