________________
आकाश के पथ पर व्यर्थ ही अर्ध - मृत कीड़ों की तरह रेंगते, लुढ़कते, क्षत-विक्षत होते चले जा रहे हो यह भी क्या जीवन ? न किसी को आने का पता, न जाने का पता ! जीवन का अर्थ है, गौरवपूर्ण अभिव्यक्ति । अज्ञात जीवन भी कोई जीवन है ।
चार प्रकार के फूल
एक फूल है, जो सुन्दर अवश्य है, किन्तु सुगन्धित नहीं । दूसरा सुगन्धित है, किन्तु सुन्दर नहीं। तीसरा न सुन्दर है, न सुगन्धित | चौथा सुन्दर भी है और सुगन्धित भी ।
भगवान् महावीर कहते हैं, मनुष्य को चौथे प्रकार का फूल बनना चाहिए । उसमें सौन्दर्य होना चाहिए और सुगन्ध भी । उस का बाहर का आकार - प्रकार सौम्य होना चाहिए और भीतर सत्य और अहिंसा, प्रेम आदि की सुगन्ध होनी चाहिए । जब तक जीवित रहे, महकता रहे, मरने के बाद भी महक फैलती रहे । मानवपुष्प की यही विशेषता है कि वह मुरझाने और झड़ जाने के वाद भी अपनी महक को शाश्वत काल के लिए छोड़ जाता है ।
महावीर भवन से
मैं देख रहा हूँ, दिल्ली के महावीर भवन से गाँधी मैदान में, जामुन के आस-पास बच्चों की भीड़ जमा हो रही है और सब की नजर प हु काले-काले जामुनों पर है ! पत्थर उठाया जाता है, निशाना साधकर फेंका जाता है और फिर कुछ देर इन्तजार की जाती है कि वह फलों के गुच्छे को लगता है या नहीं ? यदि फल टूट कर नीचे आता है, तो उछल कर उसे झोली की भेंट कर दिया जाता है और यदि नहीं लगता, लक्ष्य वेध असफल हो जाता है, तो दूसरा पत्थर उठा कर मारा जाता है, और फिर वही प्रतीक्षा |
अमर - वाणी
१५६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org