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मनुष्य ! यदि तू किसी का पिता है, तो विचार कर, क्या तूने पिता का कर्तव्य पूर्ण किया है ? अपनी सन्तति को शिक्षण दिया है ? उसे मानवता का संदेश सुनाया है ? उसे कितना ऊँचा उठाया है ? देश का योग्य नागरिक बनने के लिए तेरी ओर से उसे कितनी प्रेरणा मिली है ?
मनुष्य ! यदि तू किसी का भाई है, तो विचार कर, क्या तूने भाई का कर्तव्य पूरा किया है ? भाई के सुख में सुख और दुःख में दुःख, यही है भाई के भाईपन को जांचने की कसौटी । इस कसौटी पर तू कब कितना खरा उतरा है ? अपने स्वार्थों का भाई के लिए कब कितना बलिदान किया है ? अपने वैभव में कब कितना साझीदार बनाया है ? यदि तू बड़ा भाई है, तो क्या कभी राम बना है ? और यदि तू छोटा भाई है, तो क्या कभी लक्ष्मण बना है ?
मनुष्य ! यदि तू किसी का पड़ोसी है, तो विचार कर, क्या तूने पड़ोसी का कर्तव्य पूरा किया ? पड़ौसी के पास तेरी वाणी की कितनी मधुरता जमा है ? तेरे स्नेह की कितनी पूँजी उसके मन की तिजोरी में सुरक्षित है ? उसके पुत्र को अपना पुत्र और पुत्री को अपनी पुत्री समझा है ? उसकी पत्नी के साथ बहन जैसा शिष्टाचार रखा है ? उसके आसुओं में अपने आँसू, उसकी हँसी में अपनी हँसी क्या कभी मिलाई है ? पड़ौसी के मान अपमान को अपना मान-अपमान और पड़ौसी के हानि-लाभ को अपना हानिलाभ समझने में ही सच्चे पड़ौसी का कर्तव्य अदा होता है । जब ऐसा अवसर मिले, तब इस कसौटी पर अपने आपको कसकर, परखा कर !
बहन ! यदि तू किसी की माता है, तो विचार कर, तूने माता का क्या कर्त्तव्य पूरा किया है ? तूने अपने पुत्र-पुत्रियों से कब कितना प्रेम किया है ? उन्हें कब कितनी धर्म और नीति की शिक्षा दी है ? मोह के कारण भोजन, वस्त्र एवं अन्य कार्यों में कोई
ओ मानव ?
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