Book Title: Amar Vani
Author(s): Amarmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 159
________________ समाज - हित समस्त मानव-जाति एक ही नाव पर सवार है। यहाँ सबके हित और अहित बराबर है। यदि पार होंगे, तो सब होंगे, और यदि डूबेंगे, तो सब डूबेंगे। सबका भाग्य एक साथ है । सब का समान भाव से किया जाने वाला सम्मिलित प्रयत्न ही नाव के सकुशल पार होने में सहायक हो सकता है । ___ यदि मानव - जाति व्यक्तिगत स्वार्थों के आगे झुक गई, तो कह कर्बाद हो जाएगी। व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर उठे बिना आज कहीं भी गुजारा नहीं है। अखण्ड मानवता मनुष्य ! क्या तू अपने ही समानाकृति मनुष्य से घृणा करता है, जाति-भेद के नाम पर, देश-भेद के नाम पर, धर्म-भेद के नाम पर ? भोले साथी ! ये सब भेद काल्पनिक हैं, मिथ्या हैं ! भला मनुष्य - मनुष्य में भेद कैसा ? द्वन्द्व कैसा ? घृणा कैसी ? तू तोड़ दे, इन भेद की दीवारों को। और, भूमण्डल पर विचरण कर अखण्ड मानवता के गीत गाता हुआ ! श्रेष्ठ मनुष्य वह है, जो भेद . में भी. अभेद के गीत गा सके। महापुरुष और जनता संसार के महापुरुष अबोध जनता का हित करना चाहते थे, उसके अज्ञान को नष्ट करना चाहते थे; परन्तु दुर्भाग्य से जनता उनकी भावना को न समझ सकी, उलट कर उनका विरोध करने लगी। यही कारण है, सभी महापुरुषों को अबोध जन-समाज की ओर से आज तक भर्त्सना, पीड़न एवं धिक्कार ही मिला है। एक १३४ अमर - वाणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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