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मंजिल की ओर जब तक राह पर नजर है, तभी तक लड़ाई है, झगड़ा है। ज्यों ही मंजिल पर नजर पहुँची नहीं कि सब समाधान हो जाता हैं। भले लोगों ! क्यों मत - मतान्तरों की पगडंडियों पर लड़झगड़ रहे हो ? चले चलो, चले चलो, उसी परम सत्य की चमकती हुई मंजिल की ओर।
सच्ची दीवाली
दीवाली की अँधेरी रात्रि में दीपक जलाते हैं, और दरवाजे के बाहर या मोरी के ऊपर रख आते हैं। यह कैसी दीवाली ? बाहर उज्ज्वल ज्योति जग-मग, जग-मग कर रही है और अन्दर अन्धकार भय की हुँकार भर रहा है ! प्रकाश-पर्व को अन्तरंग और बाह्य दोनों ही प्रकाश के रूप में मनाना चाहिए ।
मानवता और पशता
मनुष्य की मनुष्यता का गौरव इसी में है कि वह जो पाए, उससे अधिक दे। यदि अधिक नहीं, तो आधा भाग तो अवश्य अर्पण करे । मनुष्य को कमाने के लिए दो हाथ मिले हैं। परन्तु, भोजन तो एक ही हाथ से खाना चाहिए ! दोनों हाथों से कमाना, एक हाथ से देना और एक हाथ से खाना, यह मानवता है। और, दोनों हाथों से खाना पशुता है।
नेतागिरी
आज जो बड़े हैं, समाज के या देश के नेता हैं, उन पर बहुत बड़ा उत्तरदायित्व है। वे स्वयं दुःख में रह कर ही जनता को सुख
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अमर - वाणी
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