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में आती है, समय पाकर वह अंकुरित होती है, बढ़ती है, फूलती है, फलती है, बड़े वृक्ष के रूप में सब ओर फैल जाती है, आस - पास छा जाती है। फिर उसे काटने के लिए कितना श्रम और समय अपेक्षित होता है ? वृक्ष का रस चूसने वाली अमर बेल की तरह बुराई भी धीरे-धीरे फैलकर साधना की आध्यामित्क - भावना का रस चूस लेती है। अतः इसका स्वप्न में भी विश्वास न करो। निरन्तर आत्म-निरीक्षण करते रहो, जीवन के पल-पल का हिसाब रखते रहो कि कौन बुराई, कब और किस रूप में अन्दर घुस आई है ? पता लगते ही उसे बाहर निकाल फेंको, और भविष्य में बुराई के स्पर्श से बचे रहने का दृढ़ संकल्प करो !
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अमर - वाणी
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