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डाक्टर ने उत्तर दिया-रोग को रोग न समझना ।" और यदि मुझ से पूछे कि “सबसे बड़ा अपराध कौन है ?" तो मैं कहूँगा "अपराध को अपराध न समझना।"
ईर्ष्या
दूसरों की सम्पत्ति, प्रतिष्ठा और सुख - सुविधाओं की तरफ ललचाई आँखों से देखने वाला बाहर से कितना ही बड़ा साधक क्यों न हो, अन्दर से चोर है, लुटेरा है, डाकू है।
पाप और पुण्य किसी भी कार्य को प्रारम्भ करने से पहले यदि उसमें भय या लज्जा दोनों में से कोई अनुभूति आए, तो समझ लेना चाहिए कि वह अन्तरात्मा के लिए हितकर नहीं है, वह पाप है ।
पाप छपना चाहता है, अन्धकार चाहता है। और पुण्य ? पुण्य प्रकट होना चाहता है, प्रकाश चाहता है--
"गुप्तं पापं, प्रकटं पुण्यम् ।"
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भगवान महावीर
अधर्म:
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