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प्रेम करने का प्रयत्न करना । परन्तु, सबसे उत्कृष्ट और महान् रूप है, सबसे प्रेम-ही-प्रेम करना, कभी क्रोध या द्वष के भाव को हृदय में आने ही न देना।
नम्रता
मनुष्य जितना ही अपने को छोटा समझता है, वह उतना ही बड़ा बनता है, श्रेष्ठ बनता है । मनुष्य की महिमा अहंकार में नहीं, नम्रता में है, अकड़ने में नहीं, झुकने में है।
नीच होइ सो झुक पिये, ऊंच पियासा जाय ।
सरोवर के मधुर जल को पीने के लिए तन कर खड़े न रहो, जरा नीचे झुको।
यह या वह ?
तुम एक तरफ संसार के गंदे भोग - विलास भी चाहो और दूसरी तरफ आत्म - साक्षात्कार भी, ईश्वरीय दर्शन भी, तो दोनों काम एक-साथ कैसे हो सकते हैं ? पशुत्व और देवत्व की एक साथ उपासना नहीं की जा सकती। दोनों में से एक का मोह छोड़ना ही होगा। यह तुम्हारी योग्यता पर है कि तुम किस का मोह छोड़ना चाहते हो ?
ऊपर की ओर देखिए
इधर - उधर कहाँ गड्ढों में भटक रहे हो ? अधोमुख न होकर ऊर्ध्व-मुख बनिए और चोटी पर पहुँचिए । याद रखिए, नीचे अधिक भीड़ है, गन्दगी है । ऊपर का स्थान खुला है, स्वच्छ है। वहाँ जीवन का आनन्द अच्छी तरह उठाया जा सकता है।
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अमर - वाणी
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